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________________ कालवाद अक्रियावादी में १. नास्ति जीव स्वत: काल से २. नास्ति जीव परतः काल से ३. नास्ति अजीव स्वत: काल से ४. नास्ति अजीव परतः काल से ५. नास्ति आस्रव स्वत: काल से ६. नास्ति आस्रव परत: काल से ७. नास्ति बंध स्वतः काल से ८. नास्ति बंध परत: काल से ९. नास्ति संवर स्वत: काल से १०.नास्ति संवर परत: काल से ११.नास्ति निर्जरा स्वत: काल से १२.नास्ति निर्जरा परत: काल से १३.नास्ति मोक्ष स्वत: काल से १४. नास्ति मोक्ष परत: काल से क्रियावादियों में कालवाद के उपर्युक्त ३६ प्रकारों तथा अक्रियावादियों में १४ प्रकारों से यह स्पष्ट होता है कि काल को आधार बनाकर चिन्तन की परम्परा प्राचीन रही है। नन्दीसूत्र पर मलयगिरि की अवचूरि, स्थानांगसूत्र पर अभयदेवसूरि की टीका एवं हरिभद्रसूरि के षड्दर्शनसमुच्चय पर गुणरत्नसूरि की टीका के आधार पर प्रदत्त कालवाद के उपर्युक्त भेद 'कालवाद' की भारतीय परम्परा में गहरी जड़े होने के संकेत करते हैं। आगम-टीकाओं में कालवाद का स्वरूप आगम-टीकाओं में प्रकाशित कालवाद के स्वरूप पर विचार किया जा रहा है। शीलांकाचार्य आचारांग सूत्र की टीका में कहते हैं "कालत इति काल एव विश्वस्य स्थित्युत्पत्तिप्रलयकारणम्। उक्तं च- 'काल: पचति भूतानि कालः संहरते प्रजाः। काल: सुप्तेषु जागर्ति कालो हि दुरतिक्रमः।' स चातीन्द्रियः युगपच्चिरक्षिप्रक्रियाभिव्यङ्ग्यो हिमोष्णवर्षाव्यवस्थाहेतुः क्षणलवमुहूर्तयामाहोरात्रमासर्तु-अयन- संवत्सरयुगकल्पपल्योपमसागरोपमोत्सर्पिण्य- वसर्पिणीपुद्गलपरावर्तातीतानागतवर्तमानसर्वाद्धादिव्यवहाररूपः।"११२ काल ही विश्व की स्थिति-उत्पत्ति-प्रलय में कारण है। कहा गया है- काल भूतों को पकाता है, काल प्रजा का संहार करता है। सभी के सोने पर भी काल जागता है, क्योंकि काल अतिक्रमणीय नहीं है। वह (काल) अतीन्द्रिय है, युगपत्-चिर-क्षिप्र क्रियाओं से अभिव्यंजित होता है। सर्दी, गर्मी और वर्षा की व्यवस्था का हेतु है। क्षण, लव, मुहूर्त, याम, अहोरात्र, मास, ऋतु, अयन (६ मास), वर्ष, युग, कल्प, पल्योपम, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002509
Book TitleJain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShweta Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2007
Total Pages718
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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