SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनदर्शन में कारणवाद और पंचसमवाय ६९ ८८. व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र, शतक १३, उद्देशक ४ ८९. बृहद्रव्यसंग्रह, गाथा १७ भगवती सूत्र, शतक १३, उद्देशक ४ ९१. बृहद्रव्यसंग्रह, गाथा १८ बृहद्रव्यसंग्रह, गाथा १९ भगवती सूत्र शतक १३, उद्देशक ४ बृहद्र्व्य संग्रह, गाथा २१ ९५. तत्त्वार्थ सूत्र ५, १९-२० ९६. भगवती सूत्र शतक १३, उद्देशक ४ ९७. वही, शतक १३, उद्देशक ४ ९८. तत्त्वार्थ सूत्र ५.२१ ९९. समयसार, गाथा ८० १००. स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा, २३१ १०१. श्वेताश्वतरोपनिषद् १.१ १०२. महाभारत, शांतिपर्व, अध्याय ३४७, श्लोक ८८ १०३. महाभारत, शांति पर्व, २३८.४, ५ १०४. महाभारत, शांति पर्व, ३४७.८९-९० १०५. सुत्तपिटक के दीघनिकाय के प्रथम भाग में, सामफलसुत्तं, मक्खलिगोसालवाद। १०६. सन्मति तर्क ३.५३ १०७. शास्त्रवार्ता समुच्चय २.७९ १०८. धर्मबिन्दु २.६८ १०९. विंशति विंशिका, बीजविंशिका, श्लोक ९ ११०. उपदेश पद,गाथा १६५ १११. सूत्रकृतांग की शीलांक टीका पर अम्बिकादत्त व्याख्या, भाग तृतीय, पृष्ठ ८८ ११२. सूत्रकृतांग, श्रुतस्कन्ध १, अध्ययन १२ की प्रारम्भ की शीलांक टीका में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002509
Book TitleJain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShweta Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2007
Total Pages718
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy