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ऋषिभाषित का दार्शनिक अध्ययन
प्रस्तुत शोध निबंध का आठवाँ अध्याय सामाजिक चिन्तन से संबंधित है। इसमें सर्वप्रथम व्यक्ति के संस्कार से समाज के संस्कार की ऋषिभाषित की अवधारणा पर प्रकाश डाला गया है। यह स्पष्ट है कि ऋषिभाषित व्यक्तिवादी जीवन दर्शन का प्रस्तोता है। इसी अध्याय में हमने स्त्री-पुरुष के पारस्परिक संबंधों और पारिवारिक संबंधों की भी चर्चा की है। इसमें ऋषिभाषित का दृष्टिकोण मुख्य रूप से निवृत्तिप्रधान ही दृष्टिगत होता है। इसी अध्याय में वर्ण व्यवस्था और पुरुषार्थ चतुष्टय की भी चर्चा की गई है।
अंतिम अध्याय उपसंहार रूप है। जिसमें प्रत्येक अध्याय के संदर्भ में हमने अपने निष्कर्षों का उल्लेख किया है। इस प्रकार इस शोध प्रबंध में ऋषिभाषित के दार्शनिक पक्षों की एक समग्र चर्चा प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया गया है। इस प्रयास में किस सीमा तक सफल हुई हूँ यह निर्णय करना तो विद्वानों का कार्य है।
प्रस्तुत शोध प्रबंध के पूर्णाहूति के अवसर पर सर्वप्रथम पूज्य गुरुदेव अध्यात्म मार्ग उपदेष्टा एवं पथप्रदर्शक, श्रद्धेय आचार्य श्री आनंदऋषिजी एवं दीक्षा-दात्री स्व. गुरुवर्या श्रद्धेया श्री रतनकुंवरजी के चरणों में सादर वंदन करती हूँ। जिनकी असीम कृपा एवं आशीर्वाद से यह ग्रंथ संपूर्ण हो सका है।
प्रस्तुत शोध प्रबंध को पूर्ण कराने में मुझे डॉ. सागरमल जैन एवं डॉ. उमेशचन्द्र का जो वात्सल्य एवं विद्वतापूर्ण मार्गदर्शन प्राप्त हुआ है, उसके लिए मैं उनकी चिरकृतज्ञ हूँ। सच तो यह है कि ज्ञान के क्षेत्र में मेरा जो कुछ भी विकास हुआ है, उसमें डॉ. सागरमल जैन का सदैव योगदान रहा है। इस शोध कार्य में भी मेरा आधार ऋषिभाषित की उनकी भूमिका ही रही है, जिसका मैंने अनेकशः उल्लेख किया है।
पार्श्वनाथ विद्याश्रम परिवार के डॉ. श्री प्रकाश पाण्डे, डॉ. अशोकसिंह, डॉ. शिवप्रसाद, श्री दीनानाथ शर्मा, डॉ. रज्जनकुमार, डॉ. इन्द्रेश सिंह और पुस्तकालय अधिकारी महेंद्र यादव आदि की भी मैं आभारी हूँ, जिन्होंने समय-समय पर यथोचित सेवाएँ प्रदान कर मुझे सहयोग दिया है। इस अवसर पर संस्थान-मंत्री श्री भूपेंद्रनाथ जी जैन का स्मरण करना भी आवश्यक हैं, जिनके पूज्य पिता श्री द्वारा निर्मित इस संस्थान के नीरव, किन्तु सुविधायुक्त परिवेश में रहकर मैं इस शोध प्रबंध को पूर्ण कर सकी। संस्थान ने मेरी सुख-सुविधा की जो व्यवस्था की और कानपुर श्री संघ ने उसमें जो सहयोग प्रदान किया अतः उनका भी आभार व्यक्त करती हूँ और संस्थान के विकास की मंगल कामना करती हूँ।
___ मैं सहवर्ती साध्वीवृन्द की भी अत्यन्त आभारी हूँ, जिन्होंने तन-मन से सेवा करके मेरे अध्ययन कार्य में सहयोग दिया और मुझे अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त रखा।
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