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डॉ. साध्वी प्रमोदकुमारीजी अपितु आंतरिक पवित्रता है। वासेट्ठसुत्त की इस चर्चा में और ऋषिभाषित में वर्णित भारद्वाज के उपदेशों में समानता परिलक्षित होती है। अतः अंगिरस और भारद्वाज नाम के दो व्यक्ति रहे होंगे।
____ इसके अतिरिक्त अंगिरस का वर्णन थेरगाथा की अट्ठकथा में भी उपलब्ध होता है। वेणिथेगाथा में इन्हें महामुनि के नाम से संबोधित किया गया और इनकी तुलना चंद्रमा से की है जबकि चूलपंथ की थेरगाथा में इन्हें सूर्य के समान तेजस्वी कहा गया है। इस चर्चा के प्रसंग में चंपानगरी का भी वर्णन हआ है। इस प्रकार हम देखते हैं कि बौद्ध साहित्य में लगभग पाँच, सात एवं बारह अंगिरस का उल्लेख हुआ है। किन्तु जहाँ तक ऋषिभाषित में उल्लिखित अंगिरस की परंपरा और बौद्ध परंपरा में उल्लिखित अंगिरस से समानता का प्रश्न है, सुत्तनिपात्त में 10 ऋषियों में उल्लिखित अंगिरस को ही ऋषिभाषित का अंगिरस माना जा सकता है।
ब्राह्मण परंपरा में भी अंगिरस का उल्लेख कई स्थानों में हुआ है।८ सर्वप्रथम छान्दोग्य उपनिषद में घोर अंगिरस का उल्लेख हुआ है और उन्हें कृष्ण का उपदेष्टा माना गया है। महाभारत में भी अंगिरस ऋषि का उल्लेख हुआ है, जिनके आठ पुत्रों में एक का नाम घोर था। हो सकता है कि यही छन्दोग्य का घोर अंगिरस हो।
ऋषिभाषित के अंगिरस ऋषि के उपदेशों में मुख्यरूप से मानवी-प्रकृति का मनोवैज्ञानिक सूक्ष्म वर्णन मिलता हैं उसमें कहा गया है कि दीवार पर चित्र को जान पाना आसान है किन्तु छद्म युक्त जीवन जीने वाले व्यक्ति को जानना सुगम नहीं है। साथ ही साथ यह भी कहा गया है कि चाहे बाह्य रूप से जनमानस संत की निंदा करते हों और चोर की प्रशंसा करते हों, परंतु श्रमणत्व और चोरत्व की मुख्य कसौटी बाह्य प्रशंसा और निंदा न होकर आंतरिक वृत्ति ही है। बौद्ध और जैन परंपरा में वर्णित इनके उपदेशों की तुलना करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि वे बाह्य घटना को महत्त्व प्रदान नहीं करते हैं, अपितु वृत्ति को ही प्रधानता देते हैं।
इस प्रकार हम संक्षेप में यह कह सकते हैं कि जैन, बौद्ध और हिन्दू परंपरा में वर्णित अंगिरस एक ही व्यक्ति होना चाहिये न कि भिन्न-भिन्न। ५. पुष्पशालपुत्र
ऋषिभाषित के पंचम अध्ययन में पुष्पशाल ऋषि और उनके उपदेशों का वर्णन हुआ है। जैन परंपरा में ऋषिभाषित के अतिरिक्त पुष्पशाल का उल्लेख आवश्यक नियुक्ति, आवश्यकचूर्णि, आवश्यकभाष्य में भी हुआ है। आवश्यकचूर्णि दो पुष्पशालों का उल्लेख करती हैं। उसमें एक को गोबर ग्राम का निवासी और दूसरे को
48. (अ) छान्दोग्य उपनिषद् 1/2/10
(ब) आदिपर्व, 122/51
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