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ऋषिभाषित का दार्शनिक अध्ययन
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द्वार को बंद कर लेते हैं, जो रथ और धनुष को धारण कर लेता है वह ब्राह्मण नहीं है । ब्राह्मण तो वह है जो सत्य सम्भाषण करता है और चोरी कर्म से दूर रहता है। सच्चा ब्राह्मण मैथुन और परिग्रह का सेवन नहीं करता है अपितु धर्म के विविध अंगों की साधना में निरत होकर अध्ययन और स्वाध्याय में लगा रहता है। जो समस्त इन्द्रियों पर नियंत्रण रखता है और सत्य द्रष्टा है, वही ब्राह्मण है। वस्तुतः जो समस्त शीलांगों को पालन करता है, वह शीलप्रेक्षी ही ब्राह्मण कहलाने का अधिकारी हैं । सच्चा ब्राह्मण पाँच इंद्रियों को जीतकर दिव्य आध्यात्मिक कृषि करता है । १४४
वस्तुतः ऋषिभाषित में सच्चे ब्राह्मण के जो लक्षण बताये गये हैं, वे ही प्रकारान्तर या शब्दान्तर से जैन ग्रंथ उत्तराध्ययन, बौद्धग्रन्थ, सुत्तनिपात और हिन्दू परंपरा के महत्त्वपूर्ण ग्रंथ महाभारत में भी मिलते हैं । १४५
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144. इसिभासियाई, 26/1-7
145. सच्चे ब्राह्मण के स्वरूप के संबंध में उत्तराध्ययन, सुत्तनिपात और महाभारत का तुलनात्मक विवरण के लिए देखें, डॉ. सागरमल जैन के ग्रंथ "जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन'
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भाग 2, अध्याय 11.
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