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डॉ. साध्वी प्रमोदकुमारीजी (१३) मंत्र मंत्र प्रयोग से आहार लेना। (१४) चूर्ण चूर्ण आदि वशीकरण का प्रयोग करके आहार लेना। (१५) योग सिद्धि आदि योगविद्या का प्रयोग करना। (१६) मूलकर्म गर्भ स्तम्भन आदि का प्रयोग बताना।
जैसा कि हम उल्लेख कर चुके हैं ऋषिभाषित के पैतीसवें अध्याय में पंच समिति शब्द का उल्लेख मिलता है, किन्तु ये पंच समितियाँ कौन सी है इसका स्पष्ट उल्लेख हमें ऋषिभाषित में कहीं भी नहीं मिलता है यद्यपि हमें भाषा, एषणा और ईर्या समिति के विस्तृत विवरण उपलब्ध होते हैं किन्तु शेष दो समितियों के विवरण ऋषिभाषित में कहीं भी उपलब्ध नहीं है। हम यह विश्वास कर सकते हैं कि ऋषिभाषित की पंच समितियाँ वही होगी, जो जैन परंपरा या निर्ग्रन्थ परंपरा में मान्य रही है। शेष चतुर्थ एवं पंचम समिति है-4-आदान भण्ड निक्षेपण समिति--अर्थात वस्तु उठाने और रखने में सावधानी, और 5-परिस्थापन समिति-- अर्थात मूत्र विसर्जन से संबंधित सावधानियाँ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि ऋषिभाषित में ईर्या, भाषा और एषणा समिति के जो विवरण उपलब्ध हैं वे निर्ग्रन्थ परंपरा में उल्लेखित विवरण के समान ही है। विशेष रूप से ईर्या और एषणा के विवरण तो समान है। इसका कारण यह है कि जिन अम्बड़ नामक परिव्राजक ने ऋषिभाषित में भिक्षाचर्या' विधि-निषेधों का उल्लेख किया है वे अम्बड़ परिव्राजक भगवतीसूत्र की सूचना के अनुसार बाद में महावीर के अनुयायी बन गए थे।१३१ अतः वे वर्द्धमान महावीर के द्वारा प्रतिपादित भिक्षा विधि का निर्देश करें, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। यहाँ हम यह कह सकते हैं कि ऋषिभाषित में प्रतिपादित आचार के विधि-निषेध बहुत कुछ वे ही है जो जैन परंपरा में आज भी मान्य किये जाते हैं। त्रिगुप्ति
जैन परंपरा में साधना के क्षेत्र में अष्टप्रवचन माता का महत्त्वपूर्ण स्थान है। अष्ट प्रवचन माता के अंतर्गत पांच समिति और तीन गुप्ति समाहित है। पांच समितियों का विवरण हम पूर्व में प्रस्तुत कर चुके हैं अब तीन गुप्तियों के संबंध में चर्चा करेंगे। 131. भगवती सूत्र अम्बड परिव्राजक का उद्देशक
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