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ऋषिभाषित का दार्शनिक अध्ययन
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यह यात्रा किस प्रकार करना चाहिये इसका निर्देश भी श्री गिरि नामक ब्राह्मण परिव्राजक अर्हत् ऋषि इस प्रकार से करते हैं। वे कहते हैं कि सूर्य के उदित होने पर पूर्व, पश्चिम, उत्तर या दक्षिण किसी भी दिशा में सामने युगमात्र (4 हाथ) भूमि को देखते हुए विहार करना चाहिये।१२१ यदि हम जैन परंपरा में ईर्या समिति का जो उल्लेख मिलता है, उससे ऋषिभाषित के इस उल्लेख की तुलना करते है तो स्पष्ट रूप से दोनों में समानता परिलक्षित होती है। सामने देखते हुए प्रकाश में सावधानीपूर्वक यात्रा करने को ही जैन परंपरा में इर्या समिति कहा गया है।
भाषा समिति का उल्लेख भी हमें ऋषिभाषित के तैतीसवें अध्याय में प्राप्त हो जाता है। उसमें अरुण नामक ऋषि कहते हैं कि "जो शिष्ट वाणी बोलता है, वही पण्डित है।१२२ शिष्ट वाणी और प्रशस्त कर्म से ही व्यक्ति समय पर बरसने वाले मेघ के समान यश को प्राप्त होता है।१२३ इस प्रकार शिष्टतापूर्वक सम्यक् भाषण को ही भाषायी विवेक कहा जाता है। एषणा समिति
मुनि जीवन में अपनी आवश्यकताओं को किस प्रकार पूरा किया जाय, इस संबंध में जो विधि निषेध बताए गए हैं वे एषणा समिति के अंतर्गत आते हैं। ऋषिभाषित के बारहवें याज्ञवल्क्य और पच्चीसवें अम्बड़ नामक अध्याय में ऐषणा समिति का विस्तृत विवरण उपलब्ध होता है। याज्ञवल्क्य कहते हैं कि "जिस प्रकार पशु-पक्षी अपने भोजन के लिए परिभ्रमण करते है उसी प्रकार मुनि भिक्षाचर्या करे।। भिक्षाचर्या के लिए भ्रमण करता हुए मुनि किसी के प्रति कुपित न हो और न किसी से संभाषण ही करे। वह भिक्षाचर्या करते समय पांच प्रकार के याचकों में बाधक नहीं बनता हुआ भिक्षाचर्या करें।"१२४ पुनः ऋषिभाषित के पच्चीसवें अम्बड़ नामक अध्ययन में भिक्षा समिति या एषणा समिति का हमें विस्तृत विवरण उपलब्ध होता है। उसमें कहा गया है कि मुमुक्षु जितेन्द्रिय मुनि मात्र शरीर धारण के लिए और योग साधना के लिए नवकोटि विशुद्ध उद्गम और उत्पादन के दोषों से रहित विभिन्न कुलों में दूसरे व्यक्तियों के द्वारा बनाया हुआ और दूसरों के लिए निष्पादित भोजन गवेषणा करें।"१२५ गवेषणा करते हुए सौंदर्यवान नारियों को देखकर भी हृदय में वासना का अङ्कुर उत्पन्न नहीं होने दें।१२६ मात्र क्षुधा निवृत्ति दूसरों के प्रति सेवा कार्य, ईर्या
-इसिभासियाई, 37/गब
121. पडीणं वा दाहिणं वा उदीणं वा पुरतो जुगमेत्तं
पेहमाणे आहारीयमेव रीत्तितए। 122. वही, 33/1 123. वही, 33/4 124. इसिभासियाई, 12/1, 2 125. वही, 25/3 गद्यभाग
126. वही, 25/3, 4 गद्यभाग Jain Education International
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