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________________ 22 / साध्वी श्री सम्यग्दर्शना श्री लघुवृत्तिकार साधु सोमणि का परिचय पुष्पमाला पर लिखी गई टीकाओं में ग्रन्थकार की स्वोपज्ञ वृत्ति महत्त्वपूर्ण है । किन्तु यह टीका आकार में अति विस्तृत होने से इसका प्रसार अधिक न हो पाया। अतः खरतरगच्छ के साधु सोमगणि ने इस पर वि. सं. 1512 में अहमदाबाद के खीमराज की शाला में 5300 श्लोक परिमित लघुवृत्ति की रचना की । साधु सोमगणि के गृहस्थ जीवन के सम्बन्ध में हमें विशेष जानकारी नहीं मिलती, किन्तु इतना सुनिश्चित है कि वे जेसलमेर आदि अनेक जैन भण्डारों के संस्थापक अनेक जिन प्रतिमाओं के प्रतिष्ठापक खरतरगच्छीय आचार्य जिनभद्रसूरि जी के प्रशिष्य और महोपाध्याय सिद्धान्त रुचि जी के शिष्य थे । उनके गुरु सिद्धान्तरुचिजी का जन्म वि.सं. 1460 के लगभग माना जाता है। ये सभी उच्चकोटि के विद्वान् थे। इन्हें वि.सं. 1501 के पूर्व महोपाध्याय पद प्राप्त हो चुका था । साधु सोमगणि इन्हीं सिद्धान्तरुचिजी के शिष्य थे। साधु सोमगणि के अतिरिक्त उनके अन्य शिष्यों में अभयसोम, विजयसोम, मुनिसोम आदि का भी उल्लेख मिलता है और उनकी अनेक रचनाएँ भी उपलब्ध होती है । स्वयं साधु सोमगणिजी की अनेक रचनाएँ मिलती हैं। संग्रहणी अवचूरी इनकी प्रथम रचना है। इसके अतिरिक्त चरित्रपंचकवृत्ति, नन्दीश्वरस्तववृत्ति, चन्द्रप्रभस्तववृत्ति, आदि भी इनकी ही रचनाएँ हैं। इन्होंने नागद्रह पार्श्वस्तोत्र आदि कुछ स्तोत्र भी लिखे हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि साधु सोमगणि एक उच्चकोटि के विद्वान् थे और उन्होंने पुष्पमाला की इस लघुवृत्ति के अतिरिक्त भी विस्तृत रूप से टीका साहित्य का सृजन किया था। पुष्पमाला पर लिखी गई इनकी यह लघुवृत्ति उनकी विद्वत्ता की परिचायक है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002507
Book TitleUpdesh Pushpamala
Original Sutra AuthorHemchandracharya
Author
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, P000, & P050
File Size7 MB
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