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उपदेश पुष्पमाला / 21
उपलब्ध नहीं है। उनके सम्बन्ध में जो भी परिचय उपलब्ध होता है वह उनके मुनि जीवन से ही सम्बन्धित है । उनके दीक्षित जीवन के सन्दर्भ में जो सूचनाएँ उपलब्ध हैं उनके अनुसार वे प्रश्नवाहककुल से निकले हर्षपुरीयगच्छ मे हुये थे । प्रश्नवाहक कुल का उल्लेख हमें मथुरा के अभिलेखों में भी प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त इस प्रश्नवाहक कुल का उल्लेख हमें कल्पसूत्र की पट्टावली मे भी उपलब्ध होता है । कल्पसूत्र की स्थिरावली के अनुसार आचार्य सुस्थित और सुप्रतिबद्ध से कोटिकगण निकला। इस केटिकगण की चार शाखायें और चार कुल हुये। इसकी चार शाखाओं के नाम है- 1. उच्चनागरी 2. विद्याधरी 3. वज्री और 4. मध्यमिका है। इसके अतिरिक्त कोटिकगण ने जो चार कुल निकले थे उनके नाम इस प्रकार है 1. ब्रह्मलिज्ज, 2. वत्थलिज्ज, 3. वाणिज्य और 4. प्रश्नवाहक। इस प्रकार प्रश्नवाहककुल कोटिकगण का ही एक कुल था। यदि हम कल्पसूत्र स्थिरावलि पर विश्वास करे तो यह गण लगभग ई. पूर्व प्रथम शताब्दी के आस पास अस्तित्व में आया होगा। मथुरा से जो प्रश्नवाहककुल से सम्बन्धित उल्लेख प्राप्त होते है उनका समय ईसा की प्रथम - द्वितीय शताब्दी के लगभग माना जा सकता है। इससे यह बात सिद्ध होती है कि चन्द्रकुल के पश्चात् यदि कोई दीर्घजीवी कुल हुआ है तो वह प्रश्नवाहक कुल ही है। क्योंकि हर्षपुरीय गच्छ का आविर्भाव लगभग बारहवीं शताब्दी के पूर्व नहीं हुआ था । अतः उसका पूर्वज प्रश्नवाहक कुल लगभग एक हजार वर्ष तक जीवित रहा इसमें किसी प्रकार का संशय नहीं हो सकता। संभवतः हर्षपुरीय गच्छ का सम्बन्ध शाकम्भरी मंडल से जोडा गया है। शाकम्भरी मण्डल क्षेत्र उत्तर - पूर्व राजस्थान और उत्तर पश्चिमी हरियाणा रहा है। अतः सम्भावना यही है यह गच्छहर्षपुर अर्थात् वर्तमान हिसार (हरियाणा) से निकला हो ।
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