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उपदेश पुष्पमाला/ 23
साध्वी श्री सम्यग्दर्शना श्री जी ने इसका अनुवाद करके इसे सर्वसुलभ बना दिया है। आशा है कि श्रावकगण इसके स्वाध्याय से प्रेरणा लेकर अपनी ज्ञान रुचि को विकसित करेंगे। अन्त में, मैं साध्वी श्री सम्यग्दर्शना श्री जी के इस कार्य की अनुमोदना करते हुए यह चाहूँगा कि वे जिनवाणी की सेवा में सदैव तत्पर बनी रहें।
21 अक्टूबर, 2007 विजयादशमी संवत् 2064
प्रो. सागरमल जैन
प्राच्यविद्यापीठ
शाजापुर
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