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उपदेश पुष्पमाला/ 15
ब्रह्मचर्य के सम्बन्ध में सुदर्शन और स्थूलभद्र के और परिग्रह के सम्बन्ध में कीर्तिचन्द्र के दृष्टान्त दिये गये हैं। तत्पश्चात् रात्रि भोजन के गुण-दोषों की समीक्षा करते हुये इस सम्बन्ध में रविगुप्त ब्राह्मण का कथानक भी वर्णित है। तत्पश्चात् पांच समिति और तीन गुप्तियों का वर्णन है और उस सम्बन्ध में भी विभिन्न कथानकों का निर्देश किया गया है। पुनः पार्श्वस्थ मुनि के स्वरूप का दिग्दर्शन कराते हुये उनसे दूर रहने का निर्देश दिया गया है।
इसके पश्चात् चरणशुद्धि द्वार के अन्तर्गत ही इन्द्रिय जय के सम्बन्ध में विस्तार से चर्चा की गयी है और इन्द्रियों के विषयों में आसक्त होने के क्या परिणाम होते हैं इस सम्बन्ध में श्रोत्रेन्द्रिय के विषय में सुभद्रा का कथानक, चक्षु-इन्द्रिय के विषय में लोलाक्ष का कथानक घाण इन्द्रिय के विषय में राजासुत का कथानक जिव्हेन्द्रिय के विषय में जितशत्रु की धर्मपत्नी सुकुमालिका का दृष्टान्त वर्णित है। इसके पश्चात् कषायनिग्रहद्वार में कषायों के दुष्परिणाम और उनसे ऊपर उठने के उपाय भी बताये गये है।
कषायों के स्परूप की चर्चा के साथ-साथ उनके दुष्परिणामों की चर्चा की गई है।
क्रोध की दुष्टता में क्षपक साधु का कथानक, मान के सन्दर्भ में ब्रह्मदेव का कथानक, माया के सन्दर्भ में वणिक-पुत्री सुन्दरी का कथानक और लोभ के सम्बन्ध में कपिल और आषाढ़ाभूति के कथानक दिये गये है।
इसके पश्चात् अग्रिम द्वार में गुरूकुलवास के सम्बन्ध में चर्चा की गई है। इसी प्रसंग में गुरू के लक्षणों की चर्चा करते हुये आचार्य के 36 गुणों की चर्चा भी उपलब्ध होती है। गुरुकुलवास के रूप में
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