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________________ उपदेश पुष्पमाला / 151 प्रतिरूपो खलु विनयः, कायिक योगे च वाक्मानसिकौ । अष्टचतुर्विद्विविधः प्ररूपणा तस्य इयं भवति ।। 403 || प्रतिरूपयोगयोजन विनय निश्चय ही 1. काय योग विषयक 2. वाक्योग विषयक 3. मनोयोग विषयक 4. काययोग- वाक्योग विषयक 5. काययोग-मनोयोग विषयक 6. वाक्- मनोयोग विषयक 7. वाक्काययोग विषयक 8. कायवाक् - मनोयोग विषयक - इस प्रकार योगयोजन विनय क्रमशः आठ, चार एवं दो प्रकार का है जिसका विवेचन क्रमशः किया जायेगा । अब्मुट्ठाणं अंजलि, आसणदाणं अभिग्गहं किई य । सुस्सूसण अणुगच्छण, संसाहण कायअट्ठविहो ।। 404 ।। अभ्युत्थानं अंजलिः आसनदानं अभिग्रहः कृति च । सुश्रुषणं अनुगमनं, संसाधनं कायाष्टविधःः ।। 404 ।। साधु आदि के आगमन पर खडे होना, गुरू से हाथ जोडकर प्रश्न पूँछना, श्रुतज्ञानी और साधुओं के लिये आसन प्रदान करना, गुरु की आज्ञा को स्वीकार करना श्रुत श्रवण एवं वन्दन करना, गुरू आदि की सेवा करना, आये हुये गुरू के सन्मुख जाना, जाते हुये गुरू के पीछे-पीछे चलना ये आठ प्रकार के कायिक विनय है। . हियमियअफरुसवाई, अणुवीईभासि विणओ । अकुसलमणो निरोहो, कुसलमणोदीरणं चेव ।। 405 || हितमितापरूषवादी, अनुवीत - भाषी वाचिकः विनयः । अकुशलमनसो निरोधः, कुशलमनोदीरणं चैव ।। 405 || जिनके परिणाम सुन्दर हो ऐसे हितकारी वचन बोलना, मित बोलना, अनिष्ठुर वचन बोलना और स्व आलोचित बोलना यह चार प्रकार का वाचिक विनय है। आर्त्तध्यान में लगे हुये मन को रोकना एवं धर्म- ध्यान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002507
Book TitleUpdesh Pushpamala
Original Sutra AuthorHemchandracharya
Author
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, P000, & P050
File Size7 MB
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