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________________ 150 / साध्वी श्री सम्यग्दर्शना श्री दंसणनाणचरित्ते, तवे य तह ओवयारिए चेव। मोक्खविणओ वि एसो, पंचविहो होइ नायव्वो।। 400 ।। दर्शनज्ञानचारित्रे, तपे च तथा औपचारिके चैव। मोक्षविनयः अपि एव: पंचविधः भवति ज्ञातव्यः ।। 400।। दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप, और औपचारिकता के भेद से मोक्षविनय भी पांच प्रकार का है। दव्वाइसद्दहतो, नाणेण कुणतयस्स किच्चाई। चरणं तवं च सम्म, कुणमाणे होइ तविणओ।। 401 || द्रव्यादिश्रद्दधतो, ज्ञानेन कुर्वतःयस्य कृत्यानि। चरणं तपः च सम्यक् क्रियमाणे भवति तपः विनयः।। 401 ।। द्रव्य-क्षेत्र, काल एवं भाव अर्थात् वस्तु की पर्यायों में सिद्धान्त नीति द्वारा प्रकट किया गया श्रद्धा-भाव दर्शन विनय है। सम्यकज्ञान की प्राप्ति हेतु संयमादि कृत्यों का निर्वाहन ज्ञान विनय है। चारित्र और तप का सम्यक्रूप से पालन जिनाज्ञानुसार करना चारित्र विनय है तथा विविध तपों का समाचरण तप विनय कहलाता है। __ अह ओवयारिओ उण, दुविहो विणओ समासओहोइ। पडिरूवजोगणझुंजण, तह य अणासायणाविणओ।। 402 || अथ औपचारिकः पुनः, द्विविधः विनयः समासतः भवति। प्रतिरूपयोगयोजनं, तथा च अनाशातनाविनयः।। 402।। यह औपचारिक विनय संक्षेप में दो प्रकार की है – 1. प्रतिरूपयोग योजन विनय एवं 2. अनाशतना विनय । पडिरूओ खलुविणओ, काइयजोगे य वायमाणसिओ। अट्ठचउविहदुविहो, परूवणा तस्सिमा होइ।। 403 ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002507
Book TitleUpdesh Pushpamala
Original Sutra AuthorHemchandracharya
Author
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, P000, & P050
File Size7 MB
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