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उपदेश पुष्पमाला/ 109
एक-एक इन्द्रियों के अनिग्रह से ये सभी मारे गये तो फिर पांचों इन्द्रियों के अनिग्रह से क्या नहीं होगा ? अर्थात् सर्वनाश ही होगा।
__ फासिंदिएण वसणं, पत्ता सोमालियानरेसाई। इक्किक्केण वि निहया, जीवा किं पुण समग्गेहिं ?।। 274||
स्पर्शेन्द्रियेण व्यसनं, प्राप्ताः सोमालिकानरेशादयः। एकै केन अपि निहता, जीवा किं पुनः समग्रैः।। 274|| सेवंति परं विसमं, विसंतिदीपणं भणंति गुरुआवि। इंदियागिद्धा इहई, अहरगई जंति परलोए।। 275 ।। सेवन्ते परं विषमं, विशन्ति दीनं भणन्ति गुरूकापि। इन्द्रियार्थगृद्धाः इह, अधोगतिं यान्ति परलोके।। 275 ।। इन्द्रियों के विषय में रत रहने वाले प्राणी इस लोक में युद्ध, संघर्ष आदि विषम दुःखों को भोगते हैं। विषय सुखों के लिये सम्पन्न एवं समृद्ध व्यक्ति भी दीनभाव से याचनादि करते हैं तथा परलोक में भी अधोगति को प्राप्त करते हैं। __नारयतिरियाइभवे, इंदियवसगाण जाइं दुक्खाई। मन्ने-मुणेज्ज नाणी, भणिउं पुण सो वि न समत्थो।। 276।। नारकतिर्यञचादिभवे, इन्द्रियवशगानां यान्ति दुःखानि। मन्ये जानीयात् ज्ञानी, भणितुम पुनः सोऽपि न समर्थः।। 276 ।। इन्द्रियों के विषय भोगों के वशीभूत प्राणी नरक, तिर्यक, मनुष्य एवं देव भवों में भम्रण करते हुये अनेक प्रकार के दुःखों को प्राप्त करते है, जिसे केवल ज्ञानी ही जानते हैं, फिर भी उन विषयों का त्याग करने में असमर्थता का अनुभव करते हैं।
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