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108 / साध्वी श्री सम्यग्दर्शना श्री
इन इन्द्रिय-रूपी अश्वों को ज्ञान रूपी रस्सी से संयमन न करने के कारण ही जग प्रसिद्ध, महान् अहंकारी, कार्य कुशल लंकाधिपति रावण भी सीता के अपहरण रूपी अकृत्य के कारण मृत्यु को प्राप्त हुआ।
देहट्ठिएहिं पंचहिं, खंडिज्जइ इंदिएहिं माहप्पं । जस्स स लक्खंपि बहि, विणिज्जिणंतो कह सूरो ? || 271 ||
देहस्थितै पंचभिः खण्ड्यते इन्द्रियैः माहात्म्यं । यस्य सः लक्षमपि वहिः, विनिर्जयन् कथं शूरः ।। 271।। यदि बाह्य रूप से शूरवीरता दिखाते हुये भी व्यक्ति अपने इन पाँचों इन्द्रियरूपी अश्वों (घोड़ो) को वश में न कर सका तो वह बाहर लाखों योद्धाओं के जीतने पर भी उसे कैसे शूरवीर कहा जा सकता है ? अर्थात् उसे शूरवीर नहीं कहा जा सकता है।
सोच्चि य सूरो सो चेव, पंडिओ तं पसंसिमो निच्वं । इंदियचोरेहिं सया, न लंटियं जस्स चरणधणं।। 272|| स एव च शूरः स एव, पण्डितः तमेव प्रशंसामः नित्यं ।
इन्द्रियचौरैः, न लुण्ठितं यस्य चरणधनं ।। 272।। वास्तव में वहीं शूरवीर है, वही पण्डित (ज्ञानी) है एवं वही सदा प्रशंसनीय है जिसका चारित्र-धन इन्द्रिय रूपी चोरों द्वारा लूटा नहीं गया हो।
सोएण सुभद्दाई, निहया तह चक्खुणा वणिसुयाई। घाणेण कुमाराई, रसणेण हया नरिंदाई।। 273 || श्रौत्रेन सुभद्रादि, निहता तथा चक्षुषा वणिक्सुतादि।
घ्राणेन कुमारादयः, रसनेन हता नरेन्द्रादयः ।। 273 || श्रोत्र (कान) के अनिग्रह से सुभद्रा आदि मारी गयी एवं नेत्र के अनिग्रह से वणिक् (श्रेष्ठि) पुत्र मारा गया। घ्राण (नासिका) के अनिग्रह से नरसिंह पुत्र अर्थात् राजकुमार मारा गया, रसना (जिव्हा) के अनिग्रह से राजा मारा गया और स्पर्श इन्द्रिय के अनिग्रह से सुकुमाल नरेश मारे गये। इस प्रकार
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