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उपदेश पुष्पमाला / 105
पंचेव इन्द्रियाणि, लोकप्रसिद्दानि श्रौतृमादीनि । द्रव्येन्द्रिय भावेन्द्रिय-भेदविभिन्नं पुनरेकैकं । । 259 ।। श्रोत्रादि पांच इन्द्रियां लोक प्रसिद्ध है । द्रव्येन्द्रिय तथा भावेन्द्रिय भेद से प्रत्येक के दो-दो भेद होते हैं ।
अतो बहिनिव्वता, तंसत्तिसरूवयं च उवगरणं । दव्विंदियमियरं पुण, लडुवओगेहिं नायव्वं । । 260 || अतः वहिनिवृत्ताः तत् शक्तिस्वरूपकं च उपकरणं । द्रव्येन्द्रियमितरं पुनः लब्ध्युपयोगाभ्यां ज्ञातव्यं । । 260 || बाह्य द्रव्येन्द्रिय को निवृत्ति और आन्तरिक द्रव्येन्द्रिय को उपकरण कहते हैं । इसी प्रकार भावेन्द्रिय के भी लब्धि एवं उपयोग ऐसे दो भेद जानना चाहिये । पुढविजलअग्गिवाया, रुक्खा एगिंदिया विणिद्दिट्ठिा । किमिसंखजलूगालस - माइवहाई य बेइंदी । । 261 ||
कुथुपिलीलियापिसुया, जूया उद्देहिया य तेइंदी । विच्छुयभमरपयंगा, मच्छियमसगाइ चउरिंदी || 262 || मूसयसप्पगिलाइय-बभणिया सरडपक्खिणो मच्छा । गोमहिस ससय सूअर - हरिणमणुस्सा य पंचिंदी || 263 ।। पृथ्वी जलाग्निवाता, वृक्षा एकेन्द्रियाः विनिर्दिष्टाः । क्रमिशंखजलूकालसमादिवहाई च द्वि-इन्द्रियाः । । 261 || कुंथुपिपीलिकापिकशुका, यूका उद्देशीताः च त्रिइन्द्रियाः । वृश्चिकभ्रमरपतंगा, मच्छरमशकादि चतुरिन्द्रियाः । । 262 ।।
मूषकसर्पगिलहरी चावभणिता सरउपक्षिणः मक्षाः । गोमहिषशशकसूकरहरिण मनुष्याः च पंचेन्द्रियाः ।। 263 || पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय और वनस्पतिकाय के जीव एकेन्द्रिय
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