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106 / साध्वी श्री सम्यग्दर्शना श्री
है । कृमि, शंख जलौक, अलसिया आदि द्वीन्द्रिय है। कुंथु, चींटी, पिस्सु, दीमक, जूं आदि त्रीन्द्रिय है । बिच्छु भ्रमर, पतंगा, मक्खी, मच्छर आदि चतुरीन्द्रिय है। चूहा, सर्प, गिलहरी, बांभणी (सर्पजाति का विशेष जन्तु) सरायु पक्षी, मछली, गाय, भैंस, खरगोश, शूकर, हरिण और मनुष्य ये सभी पंचेन्द्रिय हैं।
कायंबपुप्फगोलय-मसूरअईमुत्तयरस पुप्फं व ।
सोयं चक्खुं घाणं, खुरप्पपरिसंठियं रसणं । । 264 ।। कदम्बपुष्प - गोलक मसूर अतिमुक्तकस्य पुष्पं च । श्रौतं चक्षु घ्राणं, क्षुरप्रप्रहरण परिसंस्थितं रसनं ।। 264 ।। कान का संस्थान कदम्ब पुष्प के गोलक के समान है, आँखका संस्थान मसूर के समान है, नासिका का आकार अति - मुक्तक के समान है और जिव्हा (जीभ) का आकार खुरपे के समान है । अर्थात् लम्बाई चौड़ाई । बाहल्लओ य सव्वाइं । अंगुल असंखभागं, एमेव पुहुत्तओ नवरं । । 265 || अंगुल पुहुत्तरसणं, फरिंस तु सरीरवित्थडं भणियं बारसहिं जोयणेहिं, सोयं परिगिहिए सद्दं । । 266 || बाहुल्यतः च सर्वाणि ।
अगुंल असंख्यभागं, एतदेव पृथुलतया न वरं । । 265 || अंगुल पृथुतररसनं, स्फरितं तु शरीरविस्तृतं भणितं ।
द्वादश योजनैः श्रौतं परिगृहणाति शब्द || 266 || बाहुल्य की अपेक्षा से इन श्रोत्रादि प्रत्येक इन्द्रिय का आकार जघन्यतः अंगुल का असंख्यातवां भाग परिमाण है तथा पृथुत्व की अर्थात् मोटाई की अपेक्षा से भी इतना ही परिमाण है । उत्कृष्टतः रसनेन्द्रिय की मोटाई अंगुल पृथक्त्व भी है।
रूवं गिण्हइ चक्खु, जोयणलक्खाउ साइरेगाउं । गन्धं रसं च फासं, जोयणनवगाउ सेसाई । । 267 ।।
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