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________________ किञ्चित् प्रास्ताविक * महोपाध्याय सिद्धि चन्द्र ग णि विरचित काव्य प्रकाश खण्डन नामक प्रस्तुत सिंघी जैन ग्रन्थमाला के ४० वें पुष्पके रूपमें प्रकाशित हो रहा है । I संस्कृत साहित्यके अभ्यासियों में काश्मीर देश निवासी महाकवि मम्मट का बनाया हुआ काव्यप्रकाश नामक, काव्यशास्त्रकी मीमांसाका प्रौढ ग्रन्थ, सुप्रसिद्ध है । संस्कृत साहित्य के प्रत्येक प्रौढ विद्यार्थीका यह एक प्रधान पाठ्य ग्रन्थ है । विक्रमकी १२ वीं शताब्दीमें, सरस्वतीके धाम स्वरूप काश्मीर देशमें, इसकी रचना हुई और थोडे ही वर्षों में यह ग्रन्थ, भारत के सभी प्रसिद्ध विद्याकेन्द्रों में, बडा आदरपात्र हो गया और सर्वत्र इसका पठन पाठन शुरू हो गया। इस ग्रन्थकी ऐसी हृदयंगमताका अनुभव कर, इस पर भिन्न भिन्न देशोंके भिन्न भिन्न विद्वानोंने, टीका-टिप्पणादिके रूपमें छोटी-बडी व्याख्याएं बनानी शुरू कर दीं, जिनका प्रवाह बराबर आज तक चल रहा है । न जानें, आज तक कितने विद्वानोंने इस पर कितनी व्याख्याएं लिखीं होंगी, और न जाने इनमेंसे कितनी ही लुप्त भी हो गई होंगीं । ग्रन्थ महारष्ट्रीय विद्वान् म. म. वामन झळकी करने, ऐसी अनेक प्राचीन व्याख्याओंका समालोडन कर, जो एक विशद नूतन व्याख्या बनाई है उसकी प्रस्तावना में इस ग्रन्थ पर लिखी गईं बहुतसी प्रसिद्ध प्रसिद्ध व्याख्याओंकी सूचि दी है। उसके देखनेसे इस ग्रन्थकी व्याख्यात्मिक रचनाओंकी संख्या आदिके विषय में कुछ कल्पना हो सकती है । महाकवि मम्मट काश्मीरदेशीय शैव संप्रदायका अनुयायी था । पर उसकी यह कृति भारत के सभी संप्रदायोंमें समान रूपसे समादृत हुई है और इससे इस रचनाकी विशिष्टता एवं विद्वत्प्रियताका भी महत्त्व समझा जा सकता है । नितान्त निवृत्तिमार्गीय जैन यतिजन, जो इस प्रकारके लौकिक वाङ्मयका प्रायः कम अध्ययन - मनन करते हैं और जो थोडे बहुत सार्वजनीन साहित्योपासक के नाते कुछ अध्ययनादि करते भी हैं तो वे विशेषतया अपने ही पूर्वाचार्योंकी रची हुई कृतियोंका करते हैं । जैनेतर विद्वानों की कृतियोंका वैसा विशेष परिचय प्राप्त करनेमें उनका आकर्षण कम रहता है । पर मालूम देता है की मम्मटाचार्यका काव्य प्रकाश जैन यतिजनोंमें भी बहुत समादरका पात्र बना है और इसमें भी विशेष उल्लेख योग्य घटना यह है कि इस ग्रन्थ पर उक्तरूपसे जिन अनेकानेक विद्वानोंने, आज तक जो अनेकानेक व्याख्याएं बनाई हैं, उन सबमें पहली एवं प्रथम पंक्तिकी पाण्डित्यपूर्ण व्याख्या बनानेका सम्मान एक जैन यतिजन को प्राप्त हो रहा है; जिनने वि. सं. १२४६ में काव्य प्रकाश संके त नामसे इसकी व्याख्या की है । † काव्यप्रकाशकी सबसे प्राचीन हस्तलिखित पोथी भी जो अभीतक ज्ञात हुई है वह राजस्थान के जेसलमेर स्थित जैन ज्ञानभण्डारमें सुरक्षित है । वह पुस्तिका ताडपत्र पर, वि. सं. १२१५, में गुजरातकी पुरातन राजधानी अणहिलपुर में, चौलुक्य चक्रवर्ती राजा कुमारपालके राज्यकालमें लिखी गई थी । [ देखो सिंघी जैन प्रन्थ मालामें प्रकाशित और हमारा संपादित 'जैन पुस्तक प्रशस्ति संग्रह; पृ० १०८] काव्य प्रकाशकी इससे प्राचीन कोई अन्य पोथी कहीं ज्ञात नहीं है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002506
Book TitleKavya Prakasha Khandana
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorRasiklal C Parikh
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1953
Total Pages148
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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