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प्रमाणनिरूपण]
प्रस्तावना यह अविनाभाव प्रत्यक्ष और अनुपलम्भ से उत्पन्न होनेवाले तर्क नाम के प्रमाण के द्वारा गृहीत होता है । बौद्ध पक्षधर्मत्वादि त्रिरूपवाले साधन को सत्साधन कहते हैं । वे सामान्य से अविनाभाव को ही साधन का स्वरूप मानते हैं । त्रिरूप तो अविनाभाव के परिचायक मात्र हैं। वे तादात्म्य और तदुत्पत्ति इन दो सम्बन्धों से अविनाभाव का ग्रहण मानते हैं । उनके मत से हेतु के तीन भेद हैं-१ स्वभावहेतु, २ कार्यहेतु, ३ अनुपलब्धिहेतु । खभाव और कार्यहेतु विधिसाधक हैं तथा अनुपलब्धिहेतु निषेधसाधक । स्वभावहेतु में तादात्म्यसम्बन्ध, कार्यहेतु में तदुत्पत्तिसम्बन्ध तथा अनुपलब्धिहेतु में यथासंभव दोनों सम्बन्ध अविनाभाव के प्रयोजक होते हैं ।
__ अकलंकदेव इसका निरास करते हैं कि-जहाँ तादात्म्य और तदुत्पत्ति सम्बन्ध से हेतु में गमकत्व देखा जाता है वहाँ अविनाभाव तो रहता ही है, भले ही वह अविनाभाव तादात्म्य तथा तदुत्पत्तिप्रयुक्त हो, पर बहुतसे ऐसे भी हेतु हैं जिनका साध्य के साथ तादात्म्य या तदुत्पत्ति सम्बन्ध नहीं है फिर भी अविनाभाव के कारण वे नियत साध्य का ज्ञान कराते हैं। जैसे कृतिकोदय से भविष्यत् शकटोदय का अनुमान । यहां कृतिकोदय का शकटोदय के साथ न तादात्म्य सम्बन्ध है और न तदुत्पत्ति ही। हेतुओं के तीन भेद मानना भी ठीक नहीं है; क्योंकि खभाव, कार्य और अनुपलब्धि के सिवाय कारण, पूर्वचर, उत्तरचर और सहचर हेतु भी स्वनियतसाध्य का अनुमान कराते हैं ।
कारणहेतु-वृक्ष से छाया का ज्ञान, चन्द्रमा से जल में पड़नेवाले उसीके प्रतिबिम्ब का अबाधित अनुमान होता है । यहाँ वृक्ष या चन्द्र न तो छाया या जलप्रतिबिम्बित चन्द्र के कार्य हैं और न स्वभाव ही। हाँ, निमित्तकारण अवश्य हैं । अत: कारणलिंग से भी कार्य का अनुमान मानना चाहिये । जिस कारण की सामर्थ्य अप्रतिबद्ध हो तथा जिसमें अन्य कारणों की विकलता न हो वह कारण अवश्य ही कार्योपादक होता है ।
पूर्वचरहेतु-कृतिका नक्षत्र का उदय देखकर एक मुहूर्त के बाद रोहिणी नक्षत्र के उदय का अनुमान देखा जाता है । अब विचार कीजिए कि-कृतिका का उदय जिससे रोहिणी के उदय का अविसंवादी अनुमान होता है, किस हेतु में शामिल किया जाय ? कृतिकोदय तथा रोहिण्युदय में कालभेद होने से तादात्म्य सम्बन्ध नहीं हो सकता, अतः खभावहेतु में अन्तर्भाव नहीं होगा। तथा एक दूसरे के प्रति कार्यकारणभाव नहीं है अतः कार्य या कारणहेतु में उसका अन्तर्भाव नहीं किया जा सकता। अतः पूर्व चरहेतु अतिरिक्त ही मानना चाहिए। इसी तरह आज सूर्योदय देखकर कल सूर्योदय होगा, चन्द्रग्रहण होगा इत्यादि भविष्यद्विषयों का अनुमान अमुक अविनाभावी पूर्वचर हेतुओं से होता है।
उत्तरचर हेतु-कृतिका का उदय देखकर एक मुहूर्त पहिले भरणी नक्षत्र का उदय हो चुका यह अनुमान होता है। यह उत्तरचर हेतु पूर्वोक्त किसी हेतु में अन्तर्भूत नहीं होता।
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