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________________ प्राक्कथन १३. सिंधी जैन सिरीज़ के लिए यह सुयोग ही है कि जिसमें प्रसिद्ध दिगम्बराचार्य की कृतियों का एक विशिष्ट दिगम्बर विद्वान् के द्वारा ही सम्पादन हुआ है । यह भी एक आकस्मिक सुयोग नहीं है कि दिगम्बराचार्य की अन्यत्र अलभ्य परन्तु श्वेताम्बरीय भाण्डार से ही प्राप्त ऐसी विरल कृति का प्रकाशन श्वेताम्बर परंपरा के प्रसिद्ध बाबू श्री बहादुरसिंह जी सिंघी के द्वारा स्थापित और प्रसिद्ध ऐतिहासिक मुनि जिनविजय जी के द्वारा संचालित सिंघी जैन सिरीज़ में हो रहा है । जब मुझको विद्वान् मुनि श्री पुण्यविजय के द्वारा प्रमाणसंग्रह उपलब्ध हुआ तब यह पता न था कि वह अपने दूसरे दो सहोदरों के साथ इतना अधिक सुसज्जित होकर प्रसिद्ध होगा । हिन्दू विश्वविद्यालय, काशी १४-८-१९३९ ई० Jain Education International - सुखलाल संघवी [ जैनदर्शनाध्यापक हिन्दू विश्वविद्यालय, काशी, भूतपूर्व जैनवाङ् मयाध्यापक गुजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद ] For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002504
Book TitleAkalanka Granthtrayam
Original Sutra AuthorBhattalankardev
AuthorMahendramuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1969
Total Pages390
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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