________________
ग्रन्थसंपादकका प्रास्ताविक वक्तव्य ४ थे और ५ वें प्रकरणकी व्यख्याएं कितनी विस्तृत होंगीं और उनमें किस प्रकारका विषय विवेचित हुआ होगा, इसकी स्पष्ट कल्पना करनेका तो कोई आंधार उपलब्ध नहीं. है; पर मूल कारिकाओंमें सूचित विषयकै आधार पर, यह अनुमान किया जा सकता है कि .४ थे प्रकरणमें माता, पिता, पितृव्य, ज्येष्ठ बन्धु, मातुल, श्वसुर, गुरु, महन्त, राजा, एवं नरेकर आदि भिन्न भिन्न व्यक्तियोंको पत्रादि कैसे लिखने चाहिये - उनकी शैली और शब्दरचना आदि कैसी होनी चाहिये - इसका विवेचन दिया गया होगा । संभव है कि इसमें ऐसें अनेकानेक पत्रोंके नमूने भी उद्धृत किये गये हों, जिनसे कुछ तत्कालीन इतिहास. एवं सामाजिक स्थिति पर भी प्रकाश प्राप्त हो सके।
५ में प्रकरणमें जिस विषयका आलेखन सूचित किया गया है यह बहुत महत्त्वका होना संभव है । इसमें अर्थ (द्रव्य ) संबन्धी व्यावहारिक विषयके लेखोंके लिखनेका प्रकार बताया गया है। व्यावहारिक लेखका अर्थ है लोकव्यवहारमें, परस्पर वस्तुओंका जो आदान-प्रदान किया जाता है, उसके प्रमाण स्वरूप जो लेख लिखे जाते हैं और जिन पर, वस्तुके लेने वाले एवं देने वालेके हस्ताक्षरादिके सिवा, उस व्यवहारमें साक्षीभूत होने वाले, तथा राजकीय कर्मचारी एवं अधिकारी आदिके हस्ताक्षरोंका होना भी आवश्यक रहता है । वैसे व्यवहार विषयक लेख कैसे लिखने चाहिये, उनमें किन किन बातोंका उल्लेख होना चाहिये- इसका वर्णन इस प्रकरणमें किया गया है । मूल कारिकाओं में तो संक्षेपमें, उन लेखोंमें उल्लिखित की जाने वाली मुख्य-मुख्य बातोंका सूचन मात्र किया गया है। पर इसकी वृत्तिमें - जो हमें उमलब्ध नहीं हो रही है - इस प्रकारके लेखोंके उदाहरणभूत लिखे गये अनेक प्राचीन लेखोंके अवतरण, उद्धरण आदि दिये गये होने चाहिये । क्यों कि ग्रन्थान्तकी कारिकाओंमें, इसका स्पष्ट सूचन किया हुआ है।
• • इस प्रकारके व्यावहारिक लखोंकी संग्रहरूप कुछ ग्रन्थात्मक कृतियां, प्राचीन पुस्तक भण्डारों में उपलब्ध होती हैं । बडौदाकी 'गायकवाडस् ओरिएन्टल सीरीज में ऐसा एक संग्रह प्रकाशित भी हुआ है जिसका नाम लेखपद्धति है। प्रस्तुत ग्रन्थके उक्त ५ वें प्रकरणमें, जिस प्रकारके लेखोंका 'लिखनक्रमविधि' सूचित किया गया है, वैसे पचासों लेख इस लेखपद्धतिमें संग्रहित हैं। इनके अवलोकनसे ज्ञात हो सकता है कि पण्डित दामोदरने भी अपनी ग्रन्थपत्तिमें इसी प्रकारके अनेक लेखोंका संग्रह किया हुआ होगा । यदि ग्रस्तुत प्रन्थका यह नष्ट भाग कहीं से उपलब्ध हो जाय तो उससे हमें तत्कालीन समाज - व्यवहार विषयक कई विशेष बातोंका परिचय प्राप्त होनेकी संभावना है।
• प्रस्तुत ग्रन्थमें प्रयुक्त प्राचीन अपभ्रंश वाक्यप्रयोगोंके आधार पर, बनारसकी तत्कालीन सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितिके विषयमें क्या क्या बातें जानने योग्य प्राप्त होती हैं, उनके संबन्धम एक मननशील निबन्ध, हमारे अन्यतम विद्वान्मित्र डॉ. मोतीचन्द्र एम्. ए. पीएच. डी. ने लिख देनेकी कृपा की है जो इसके साथ संकलित है। डॉ. मोतीचन्द्रजी,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org