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________________ उक्तिव्यक्तिप्रकरण विद्वन्मंडल में सुपरिचित हैं । भारतकी प्राचीन संस्कृतिके विविध अंगों पर इनको अध्ययन • और अन्वेषण कार्य सतत चालू है और अनेक मौलिक निबन्धं. एवं ग्रन्थ निर्माण कर इनने हमारे सांस्कृतिक इतिहास पर बहुत कुछ नवीन प्रकाश डाला है। बनारसकी प्राचीन एवं नूतन दोनों प्रकारकी सामाजिक परिस्थिति पर किया गया इनका विवेचन, अधिगत एवं अनुभूत ज्ञानका द्योतक है । हम इनके इस प्रकारके स्नेहान्वित अनुग्रहके लिये, यहां पर, अपन' सविशेष कृतज्ञभाव प्रकट करते हैं। ___ग्रन्थकार पण्डित दामोदरके. समयादिके विषयमें भी डॉ. मोतीचन्द्रजीने अपने निबन्धमें, यथासाधन यथेष्ट प्रकाश डाला है । * हमारी इच्छा थी कि हम इसके साथ ग्रन्थगत सभी अपभ्रंश शब्दप्रयोगोंका, राष्ट्रभाषा हिन्दीमें, भाषान्तरित स्वरूप दे दें और, उसके साथ प्राचीन राजास्थानी-गुजराती रूपान्तर भी दे दें; जिससे राष्ट्रभाषा हिन्दीके विकास क्रमका अध्ययन करने वाले जिज्ञासुओंको कुछ अधिक उपयुक्त, सामग्री मिल सके। हमने इसकी बहुत कुछ संकलना भी कर रखी है। परंतु, हमारे हाथ, एक साथ, इस प्रकारके कई प्राचीन ग्रन्थोंके संशोधन, संपादन, एवं मुद्रणादि कार्य में, अतीव व्यस्त रहनेके कारण, हम अपनी उस आकांक्षाको पूर्ण करनेमें असमर्थ रहे । वास्तवमें, इसी आकांक्षाके निमित्त, वर्षोंसे इस पुस्तककी प्रसिद्धि रुकी रही। सुहृद्वर श्री सुनीति बाबूका लिखा हुआ यह गंभीर 'स्टडि' ५-६ वर्षोंसे मुद्रित हो कर भी प्रसिद्रि नहीं पा सका और इसके अध्ययन - अवलोकनके लिये अनेक विद्वान् एवं विद्यार्थी जन बहुत उत्सुक बन रहे । मुझे इसके लिये खेद होना स्वाभाविक है- पर आज जिस-तिस प्रकार भी मैं इसे विद्वानोंके करकमलोंमें उपस्थित करनेका यह शुभावसर प्राप्त कर सका हूं- उसीते कुछ सन्तुष्ट बनना चाहता हूं । तथास्तु । द्वारत्पूर्णिमा. वि. सं. २०१० ) २., अक्टूबर, १९५३ ई. स. भारतीय विद्या भवन, बंबई जिन वि जय मुनि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002503
Book TitleUkti Vyakti Prakarana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDamodar Pandit
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1952
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size13 MB
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