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हेमचन्द्राचार्य के पश्चात् दूसरी सामग्री 'मोहराजपराजय' नामक नाटक के रूप में है। यह नाटक कुमारपाल के उत्तराधिकारी अजयपाल या अजयदेव के एक मन्त्री मोढवंशीय यशःपालका बनाया हुआ है और यह गुजरात और मारवाड़ की सीमा पर स्थित थारापद्र-इस समय थराद-नगर के 'कुमार विहार' नामक जैन मन्दिर में महावीर यात्रा महोत्सव के समय खेला गया था । कुमारपाल ने जैनधर्म का स्वीकार कर जीवहिंसा, शिकार, जुआ और मद्यपान आदि जिन दुर्व्यसनों का निषेध कराया था उस कथावस्तु को लेकर इस नाटक की रचना हुई है। इस नाटक का संकलन हृदयंगम और कल्पनामनोहर है। इसमें कोई ऐसा स्पष्ट ऐतिहासिक उल्लेख नहीं है किन्तु बहुत सी विशिष्ट बातें ऐसी हैं जो ऐतिहासिक दृष्टि से उपयोगी हो सकती हैं और इसीलिए वे प्रमाणभूत मानी जा सकती हैं ।
तीसरी कृति सोमप्रभाचार्य कृत 'कुमारपालप्रतिबोध' है । कुमारपाल की मृत्यु के ११ वर्ष पश्चात्, पाटन में ही कुमारपाल के प्रसिद्ध राजकवि सिद्धपालके धर्मस्थान में ही यह रचना पूर्ण हुई थी । स्वयं हेमचन्द्राचार्य के तीन शिष्य-महेन्द्र, वर्धमान और गुणचन्द्र-ने इस ग्रन्थ को आद्योपान्त सुना था । यह ग्रन्थ है तो बहुत बड़ा करीब ८-९ हजार श्लोक का किन्तु इसमें ऐतिहासिक सामग्री करीब २००-२५० श्लोक जितनी ही है । इस ग्रन्थकार का उद्देश कुमारपाल का विस्तृत जीवन चरित्र लिखने का नहीं था किन्तु हेमचन्द्राचार्य ने जिन धर्मकथाओं द्वारा कुमारपाल को जैन-धर्माभिमुख बनाया था उन्हीं कथाओं को लक्ष्य कर एक कथासंग्रहात्मक ग्रन्थ बनाने का था । ग्रन्थकार उसका निर्देश प्रारम्भ में ही कर देते हैं । वे कहते हैं कि-"इस युग में हेमचन्द्रसूरि और कुमारपाल दोनों असम्भव चरित्रवाले पुरुष हुए हैं। इन्होंने जैनधर्म की महती प्रभावना द्वारा कलियुग में सत्ययुग का अवतार किया है । यद्यपि इन दोनों पुरुषों का जीवन सम्पूर्णतया मनोहर है लेकिन मैं सिर्फ जैनधर्म के प्रतिबोधक विषय में ही कुछ कहना चाहता हूँ।" इस प्रकार इस ग्रन्थ का उद्देश भिन्न होने के कारण इसमें ऐतिहासिक विवरण की विशेष आशा नहीं की जा सकती, तो भी प्रसंगवश इसमें भी कहीं कहीं ऐसा विवरण मिलता है जो कुमारपाल का रेखाचित्र अंकित करने के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है।
इन तीनों समकालीन-अथवा जिन्होंने कुमारपाल के राज्यशासन को स्वयं अच्छी तरह देखा था-ऐसे पुरुषों का ही आधार मैंने इस निबन्ध में लिया है । यदि कहीं पर उत्तरकालीन कृतियों का आधार लिया गया है तो वह केवल मूल घटना को साधार प्रमाणित करने के लिए।
कुमारपाल का धर्मसंस्कार हमारे देश के इतिहास में कुमारपाल के धार्मिक जीवन के विषय में एक प्रकार की अज्ञानता या गैर समझ फैली हुई है । हेमचन्द्राचार्य के उपदेशों से प्रभावित होकर कुमारपाल
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