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________________ लगे कि-'मेरे दुविवेकसे ही इस तरह लोक हिंसा में प्रवृत्त होते हैं, इस लिए धिक्कार है मेरे प्रजापति नाम को !' इस प्रकार अपनी आत्मा को ठपका देते हुए राजभवन में आए और अधिकारियों को बुला कर सखत आज्ञा दी की-'जो झूठी प्रतिज्ञा करे उसे शिक्षा होगी, जो परस्त्रीलंपट हो उसे, अधिक शिक्षा होगी, और जो जीवहिंसा करे उसे, सबसे अधिक कठोर दण्ड मिलेगा-इस प्रकार की आज्ञापत्रिका सारे राज्य में भेज दो ।' अधिकारियों ने उसी वखत उक्त फरमान सर्वत्र जाहिर कर दिया । इस प्रकार सारे महाराज्य में यावत् त्रिकूटाचल (लंका) पर्यन्त-अमारीघोषणा कराई । इसमें जिनको नुकसान पहुँचा उनको तीन तीन वर्ष तक का अन्न दिया । मद्यपान का प्रचार भी सर्वत्र बन्ध कराया । 'यज्ञ-याग में भी पशुओं के स्थान पर अन्न का हवन होना शुरु हुआ ! एक दिन महाराज सोये हुए थे, इतने में किसी के रोने की अवाज सुनाई दी । आप ऊठ कर अकेले ही उस स्थान पर पहुँचे । जा कर देखा तो एक सुन्दर स्त्री रोती हुई नजर पड़ी । उसे पूछने पर मालूम हुआ कि, वह एक धनाढ्य गृहस्थ की स्त्री है, उसका पति और पुत्र दोनों मर गये । वह इसलिए रोती थी कि-'राज्य का पूर्वकाल से यह क्रूर नियम चला आता है कि संततिहीन मनुष्य की मिल्कत का मालिक राज्य है-अत: इस नियमानुसार मेरी जो सम्पत्ति है वह सब राज्य ले लेगा तो फिर मैं अपना जीवन किस तरह बिताऊँगी । इसलिए मुझे भी आज मर जाना अच्छा है ।' महाराज ने यह सुनकर उसे आश्वासन दिया और कहा कि-'तूं मर मत । राजा तेरा धन नहीं लेगा । सुखपूर्वक तूं अपनी जिन्दगी को धर्मकृत्य करने में बिता ।' स्वस्थान पर आ कर महाराज ने मनमें सोचा कि इस प्रकार, राज्य के क्रूर नियम से प्रजा कितनी दु:खी होती होगी? आपका अन्त:करण दया से भर आया । प्रजा के इस त्रास को नहीं सहन कर सके । आपने अधिकारियों को बुला कर कहा कि-'निष्पुत्र मनुष्य की मृत्यु के बाद, उसकी सम्पत्ति राज्य ले लेता है यह अत्यन्त दारुण नियम है । इससे प्रजा बहुत पीडित होती है, इस लिए यह नियम बन्ध करो । चाहे भले ही मेरे राज्य की ऊपज में लाख-दो लाख तो क्या परन्तु क्रोड-दो-क्रोड रुपये का भी क्यों न घाटा आ जाय !' अधिकारियों ने आपकी आज्ञा को मस्तक चढाया और उसी क्षण सारे राज्य में इस कायदे की क्रूरता दाब दी गई, जिससे प्रजा के हर्ष का पार नहीं रहा । तथा कर-दण्ड वगैरह भी आपने बहुत कम कर दिये थे। इस प्रकार आपने अपनी प्रजा को अत्यन्त सुखी की थी। १. इस बात पर गुजरात के प्रख्यात विद्वान, सद्गत प्रो० मणिलाल नभुभाई द्विवेदी लिखते हैं कि"कुमारपाल ने जब से अमारी घोषणा (जीवहिंसा बन्ध) कराई तब से यज्ञयाग में भी मांसबलि देना बन्ध हो गया, और यव तथा शालि होमनेकी चाल शुरु हुई । लोगों की जीव जाति ऊपर अत्यन्त दया बढ़ी । मांसभोजन इतना निषिद्ध हो गया कि, सारे हिन्दुस्थान (बंगाल, पंजाब, इत्यादि) में, एक या दूसरे प्रकार से, थोड़ा बहुत भी मांस, हिन्दु कहलाने वाले, उपयोग में लाते हैं, परन्तु गुजरात में तो उसका गन्ध भी लग जाय तो, झट स्नान करने लग जाते हैं, ऐसी वृत्ति लोगों की उस समय से बन्धी हुई आज पर्यन्त चली जा रही है।" (देखो 'व्याश्रयकाव्य' का गुजराती भाषान्तर, गायकवाड सरकार का छपाया हुआ ।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002501
Book TitleKumarpalcharitrasangraha New Publication of Shrutaratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year2008
Total Pages426
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size21 MB
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