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दीक्षा देकर अपना शिष्य बना लिया - यह आश्चर्य जैसा मालूम देगा, परन्तु इसमें आश्चर्य होने का कोई कारण नहीं है । इस प्रकार की प्रथा, इस देश (भारतवर्ष) में तथा अन्य देशों में, प्राचीन काल से चली आ रही है, और चल रही है ।......पुख्त उम्र वाले को ही साधु बनाना चाहिए, यह नियम है अच्छा, परन्तु अन्य सभी धर्मो में देखा जायेगा तो इस तरह अल्पवय वाले ही, बहुत से नवीन आचार्य पसन्द किए गए मालूम देंगे ।"
विद्याभ्यास
पूर्व जन्म के सुसंस्कार और क्षयोपशम की प्रबलता के कारण थोड़े समय में ही, हेमचन्द्र मुनि ने सर्व शास्त्रों का अध्ययन कर, पूर्ण पाण्डित्य प्राप्त कर लिया । स्मरण-शक्ति और धारणा - शक्ति बहुत तीव्र होने से अल्प परिश्रम से ही अपार ज्ञान सम्पादन कर लिया । विद्याभिरुचि अत्यन्त तीव्र होने के कारण भगवती सरस्वती देवी प्रसन्न होकर, स्वयं वर प्रदान करने के लिए आई थी !
जितेन्द्रियता
आपका आत्मसंयमन और इन्द्रियदमन अत्यन्त उत्कट था । इतनी अल्प वय में, इस प्रकार की वैराग्य वृत्ति का अस्तित्व होना, अत्यन्त अश्चर्यकारक है । संसार भर में, सबसे कठिन पाल्य नियम ब्रह्मचर्य है । जिनका वर्णन सुनकर रोमांच खडे हो जाय ऐसे घोर तपों को, असंख्य, वर्षों तक तपने वाले बड़े बड़े योगी भी इस दुष्कर नियम की कठोर परीक्षा में, अनुत्तीर्ण हो गए हैं । इसी ब्रह्मचर्य को, पूर्ण रूप से, हेमचन्द्र मुनि ने किस तरह धारण किया था, यह इस चरित्रांतर्गत पद्मिनी (पृष्ठ २५) वाले वृत्तान्त के पढ़ने से अच्छी तरह ज्ञात हो जाता है । धन्य है, इस महापुरुष की सत्त्वशीलता को ! पूर्ण ब्रह्मवृत्ति को ! निर्विकार दृष्टि को ! और उत्कृष्ट योगिता को ! अहो ! कितनी जितेन्द्रियता ? कैसी मनोगुप्ति ? कितना बड़ा दृढ संकल्पबल ? सच्च है इस प्रकार की सच्चरितता को विना अद्भुत विद्यायें कब प्राप्त हो सकतीं हैं, और जगत् का भला भी कहाँ से हो सकता है ? इस महात्मा के ब्रह्म तेज से कोयलों का ढेर भी सुवर्णमय हो जाता था ! ( पृ० २३)
आचार्य पदप्राप्ति
इस प्रकार हेमचन्द्र मुनि के ज्ञानबल और चारित्रबल की उत्कृष्टता का प्रवाह जैन संघ में सर्वत्र प्रसर गया । 'अब जैनधर्म की विजयपताका थोड़े ही समय में सारे भूमण्डल में उडने लगेगी- ' इस प्रकार संघ में आनन्दवार्ता प्रवर्तने लगी। संघ के आग्रह से तथा शासन की
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