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________________ 'प्रभु के मन्दिर में या मन्दिर के बाहर चाहे जिस स्थान पर प्रभुजी के निमित्त जो जो बोली बोली जाय वह सब देवद्रव्य कहा जाता है । उक्त ठहराव के अनुसार वर्ताव करना चाहिये । इससे विपरीत आचरण, शास्त्र तथा परम्परा की आज्ञा के विरूद्ध ही कहा जाएगा । राधनपुर संघ के भाइयों द्वारा की गई जाहिरात मुनि सम्मेलन द्वारा सम्मत नहीं है । ( ३ ) पू. पंन्यासजी म. श्री कंचनविजयजी म. धानेरा ( पू. आ. म. श्री विजयकनकप्रभ सू. म. ) आसोज वदी ७ आपने जो राधनपुर के पर्चे का विरोध किया है वह समुचित है। हम इस विषय में आपसे सम्मत हैं । धर्मपुरी कहे जाने वाले राधनपुर नगर में पट्टक और पू. आत्मारामजी महाराज के बहाने अनर्थ हो रहा है अतः साधुभगवंतों को यथा योग्य करके उनको ठिकाने लाना चाहिए । ( ४ ) पू. पं. म. श्री राजेन्द्रविजयजी म. जावाल ( मारवाड़) ( पू. आ. म. श्री विजय राजेन्द्रसूरिजी म ) आसोज वदी ७ राधनपुर के हेन्ड बिल में मुनि सम्मेलन के असल ठहराब के नाम से जो पंक्ति लिखो गई है वह सर्वथा मिथ्या है; ऐसा ठहराव हुआ ही नहीं । स्वप्नद्रव्य देवद्रव्य ] [ 89
SR No.002500
Book TitleSwapnadravya Devdravya Hi Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1984
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size8 MB
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