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________________ पू. पं. म. श्री प्रभावविजयजी म. उरण . (पू. आ. म. श्री वि. प्रसन्नचन्द्र सू. म. ) .. ___ आसोज वदी ७ राधनपुर का पर्चा पढ़कर दुःख के साथ कहना पड़ता है कि राधनपुर जैसे धार्मिक क्षेत्र के लिए तो ऐसा ठहराव या यह वृत्ति लांछनरूप ही है। मुनि सम्मेलन ने जो ठहराव किये थे उसमें आत्मारामजी म. के विजयवल्लभ सूरि महाराज तथा मुनिराज श्री विद्याविजयजी आदि मुनिवर्य उपस्थित ही थे । उन सबके समक्ष द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव का अनुसरण करके ही ठहराव किये गये हैं। इसलिए हमें तथा प्रत्येक संघ को सम्मेलन के ठहरावों के अनुसार ही वर्ताव करना चाहिए । यही उचित है । शासनदेव सबको सद्बुद्धि दें, यही अन्तरेच्छा। ...पू. प्रा. म. वि. भुवनतिलकसूरिजो भ. ... बम्बई-दादर आसोज वदी ८ श्री प्रभुजी के पांचों कल्याणक सम्बन्धी बोलियां जहां कहीं बोली जाय वे सब देवद्रव्य ही हैं । प्रभुजी के निमित्त से स्वप्न आये हैं अतः स्वप्न-पालना आदि का द्रव्य देवद्रव्य गिना जाना चाहिये और उसे देवद्रव्य में ले जाने का प्रयास करना चाहिए। मुनि सम्मेलन में इसी आशय का ठहराव हुआ है। राधनपुर के कुछ भाइयों ने जो ठहराव प्रकाशित किया है, वह विरुद्ध है । उसके साथ मेरा विरोध है । 90] | स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य
SR No.002500
Book TitleSwapnadravya Devdravya Hi Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1984
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size8 MB
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