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________________ इसी बात का समर्थनकरने वाला लेख पुस्तक के प्रारम्भ में लिखा है । उसमें का कितना ही अंश तो उपरोक्त पर्चे में उल्लिखित बात का पुनरावर्तन है तथापि वह अवतरण उपयोगी और प्रासंगिक होने से यहाँ पुनः उद्धृत करना उचित समझते हैं । राधनपुर के पर्चे का मुंहतोड़ जबाब प्राचार्य कीतिसागरसूरि आदि सागर का उपाश्रय, पाटण सं. २०२२ आसोज राधनपुर का पर्चा ता. १-११-६६ को मेरे हाथ में आया । उसको पढ़कर बहुत दुःख हुआ । क्योंकि उस पर्चे में सम्मेलन के पट्टक के नाम पर हलाहल झूठा बयान है । पट्टक मंगवाकर पढ़ा। उसमें ११ मुद्दे हैं । दूसरा मुद्दा देवद्रव्य के संबध में है। उसकी दूसरी कलम इस प्रकार है : 'प्रभु के मन्दिर में या मन्दिर के बाहर, चाहे जिस स्थान पर प्रभु के निमित्त जो बोली बोली जाय वह सब देवद्रव्य कहा जाता है।' विपरीत मार्ग पर चलने वाले को पाप लगता है उसकी अपेक्षा अनेक गुना पाप विपरीत बात प्रस्तुत करने वाले को लगता है । यह तो उत्सूत्र प्ररूपणा है। आगे जाकर श्री आत्मारामजी म. का जो मन्तव्य बताया है वह भी साहित्य को देखते हुए असत्य ठहरता है क्योंकि अमृतसर में अमरसिंहजी स्थानकवासी साधु ने १०० प्रश्न पूछे थे उनका उत्तर आत्मारामजी म. ने दिये हैं। उनके शिष्य लक्ष्मी 82 1 [ स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य
SR No.002500
Book TitleSwapnadravya Devdravya Hi Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1984
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size8 MB
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