SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विजयजी महाराज ने उनका संग्रह किया है और आचार्य वल्लभसूरि ने ढुंढक हितशिक्षा पुस्तक में पृष्ठ ८३ पर उन्हें प्रकट किया है। उनमें से नौवें प्रश्न में पूछा गया है कि 'आप स्वप्न उतारते हो, नीलाम करते हो, वह किसलिए? उसके उत्तर में आत्मारामजी म. ने कहा कि, 'शासन की शोभा के लिए और देवद्रव्य की वृद्धि के लिये हम स्वप्न उतारते हैं।' उनकी आज्ञा को आ. कमलत्रि म,, उपाध्याय वीरविजयजी, प्रवर्तक शान्तिविजयजी, मुनि हसविजयजी, मुनि चतुरविजयजी आदि शिष्य-प्रशिष्य पालते आये हैं । यह उनके पत्रों से सिद्ध होता है । वे पत्र हमारे पास हैं। (जो देखना चाहें देख सकते हैं।) उन पत्रों में से एक नमुना : भाननगर से मुनि भक्तिविजयजी द्वारा लिखे हुए पत्र का उत्तर देते हुए मुनि चतुरविजयजी लिखते हैं कि 'पाटण संघ की तरफ से आपके लिखे अनुसार ठहराव हआ हो ऐसा हमारे सुनने में या अनुभव में नहीं आया है परन्तु पोलिया के उपाश्रय में अर्थात् यती के उपाश्रय में बैठने वाले स्वप्नों की आय में से अमुक भाग उपाश्रय खाते में लेते है, ऐसा सुनने में आया है।' ' 'जब पाटण के संघ में ऐसा ठहराव हुआ ही नहीं तो गुरु की अनुमति-सम्मति कहां से हो सकती है ? यह स्वयं विचार कर लेना चाहिए । विघ्नसन्तोषी, व्यक्ति दूसरों को हानि करने हेतु यद्वा तद्वा करें, उससे क्या? यदि किसी के पास महाराज के हाथ की लिखित कलम निकले तब तो ठीक, अन्यथा लोगों के गप्पों पर विश्वास नहीं करना।' स्वप्नद्रव्य, देवद्रव्य ] 183
SR No.002500
Book TitleSwapnadravya Devdravya Hi Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1984
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy