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राधनपुर का पर्चा
ता. ६-९-६६ श्री राजनगर साधु सम्मेलन का स्वप्नों के घी संबंधो
असली-ठहराव
'जिस गांव में जिस प्रकार स्वप्नों की बोली का घी जिस खाते में ले जाया जाता हो वहां वह उसी प्रकार ले जाया जाय ।' • उक्त ठहराव ३१ मार्च १९३४ सं. १९९० चैत्र वदो १ शनिवार के दिन अखिल हिन्द मुनि सम्मेलन में हुआ था। अर्थात् स्वप्नों का घी देवद्रव्य में ले जाने के सम्बन्ध में जो प्रचार मूनि-सम्मेलन के नाम से राधनपुर में किया जा रहा है वह जैन संघ के संगठन का खण्डन करने जैसा है, यह हम श्री संघ को सूचित करते हैं।
राधनपुर में भी श्री सागर संघ ने सं. १६४३ भादवा सुदी १के दिन स्वप्नों का घी साधारण में ले जाने का सर्वानुमति से ठहराव किया है और पूज्य आत्मारामजी महाराज ने इस ठहराव को करने में कोई गलतो का न होना बताया है तथा कहा है कि श्री संघ ऐसा ठहराव कर सकता है। इसलिए स्वप्नों के घी के सम्बन्ध में जब तक असलो ठहराव है, वहां तक कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता सिवाय इसके कि अखिल भारत का श्री संघ इस प्रकार का ठहराव करे अथवा तो पूज्य आचार्य देव सर्वानुमति से निर्णय देवे । आज भी कई नगरों ओर गांवों में स्वप्नों के घी के विषय में अलग अलग ठहराव चल रहे हैं।
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[ स्वप्नद्रव्य, देवद्रव्य