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विरुद्ध स्वप्नों की उपज को देवद्रव्य के बदले साधारण में और वह भी चतुर्विध संघ के उपयोग में आवे उस साधारण खाते में ले जाने को कुप्रथा से चिपक कर समस्त संघ को देवद्रव्य के भक्षण के महापाप के भागीदार बना रहे हैं, उन सबको सद्बुद्धि प्राप्त हो और वे सन्मार्ग पर लौटे ! इसके लिये आज शास्त्रीय प्रणाली का हिम्मत और दृढ़ता के साथ निर्भय होकर प्रचार करने का प्रत्येक शासन प्रेमी धर्मात्मा का कर्तव्य है।
(ता. २०-११-६६ के कल्याण से साभार)
प्रारम्भ में बताये हए अनुसार राधनपूर के वि. सं. २०२२ के चातुर्मास में श्री सुविहित परम्परा में मानने वाले, शास्त्रानुसारो श्रद्धा रखने वाले श्री शासन प्रेमी श्री संघ की दृढ़ता से थोड़े वर्षों बाद विजयगच्छ तथा सागरगच्छ के जिन संघों ने स्वप्न को आय को देवद्रव्य में ले जाने का शास्त्रानुसारी निर्णय कर वर्षों से चली आती हुई संसारवर्धक पाप परम्परा की कारणभूत कुप्रथा का दृढता से त्याग किया, इसके लिए उन्हें जितना धन्यवाद दिया जाय, वह कम है।
जब राधनपुर के चातुर्मास में पू. पाद परम तारक परम गुरुदेवों की पूण्यमयी कृपा दृष्टि से स्वप्नों की उपज को साधारण में ले जाने की कुप्रथा का हमने विरोध करके शासन प्रेमी श्री संघ को हिम्मत दिलाकर अलग स्थान पर स्वप्न-दर्शन-स्वप्न उतारने का शुभ कार्य करने को प्रेरणा दो । उसके विरोध में राधनपुर में कितनेक कदाग्रही भाइयों ने जाहिर में विरोध करने के लिए हेन्डबिल (पर्चा) निकाला था उसे हम नीचे उद्घृत करके उसका उत्तर भी इसके बाद प्रस्तुत कर रहे हैं।] स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य ]
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