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________________ माटुंगा, कपडवंज, सायन, बोरीवली, दादर, भायखला आदि बड़े-बड़े नगरों में देवद्रव्य में हो जाता है। किसी किसी जगह अमुक भाग साधारण में जाता है परन्तु वह साधारण सर्वमान्य नहीं, परन्तु देरासर के साधारण में जाता है अर्थात् केसर-घीपुजारी की पगार आदि में जाता है।' _ 'यह शासन को प्रणालिका एक धारा से चली आ रही है, इसमें आ जाना हो हितकारी है। गिरते हुए का उदाहरण नहीं लिया जाता । उदाहरण चढ़ते हुए का ही लेना चाहिए।' 'गत वर्ष बीजापुर में हमारी और आ. कैलास सागरसूरि को निश्रा में बहुत वर्षों से विपरीत चली आ रही प्रणाली में परिवर्तन करके स्वप्नों के पैसों को देवद्रव्य में कायमी तौर पर ले जाने का ठहराव कराया था।' 'इस वर्ष (पाटन-सागर के उपाश्रय में) हमने भी व्याख्यान में जाहिर किया था और देवद्रव्य में जितना नुकसान पड़े उसकी भरपाई करा देना, ऐसा निश्चित करके ही व्याख्यान चालू किया था। उसमें से २५ प्रतिशत की जबाबदारी ट्रस्टियों, ने ली थी ओर २५ प्रतिशत की मैंने ली थी। इससे इस वर्ष हमारे निमित्त से देवद्रव्य को एक पाई का भो नुक्सान नहीं पहुंचा है। इस सम्बन्ध में लगभग एक सप्ताह तक व्याख्यान भी चलाया था। मुख्य ट्रस्टियों के विचारों में परिवर्तन आया है । परन्तु संघ का काम होने से एक अग्निकण' सौ मन जुवार का नाश करता है, ऐसा होने से धीरे-धीरे लाइन पर आ जावेगा । आपको भी चलो आ रहो गलत प्रणाली को बदल कर सही मार्ग पर आ जाना चाहिए और सबके साथ मिल जाना चाहिए यही योग्य है।' स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य ] [73
SR No.002500
Book TitleSwapnadravya Devdravya Hi Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1984
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size8 MB
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