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________________ - इसी प्रकार उन्होंने राधनपुर सागरगच्छ के संघ के वहीवटदारों को भी हिम्मतपूर्वक इस शास्त्र-विरोधी प्रणाली को बिल्कुल छोड़कर देवद्रव्य भक्षण के महापाप से स्वयं बचने और संघ को बचाने हेतु पत्र लिखा था; वह भी अनेक रीति से प्रेरक और शासनप्रेमी संघ को शास्त्रानुसारी प्रणाली में स्थिर रखने वाला है। ___ उस पत्र में वे कहते हैं कि, 'वहां स्वप्नों के पैसों का अमुक भाग सर्वसामान्य साधारण खाते में जाता है, यह जानकर बहुत ही दुःख हुआ है । हीरों की खान जैसे आपके क्षेत्र में यह शोभायोग्य नहीं है । कदाचित् ऐसा लगता हो कि बहुत वर्षों से यह चला आ रहा है। अब इसे बदलें तो नाक जाता है, तो यह भ्रमणा है ।' 'गौतम स्वामी भी भूल को माफी मांगने एक गृहस्थ के पास गये । उन्हें तो लाभ देखना था । वे पापभोरु थे। पाप की शंका वाला कार्य महापुरुष भी नहीं करते। अतः सर्वसामान्य साधारण में (वह स्वप्नराशि) ले जाना अयोग्य है।' 'क्योंकि स्वप्नों के पैसों का थोडा भाग भी सर्व-सामान्य साधारण में जाय, ऐसा सौ में से एक गांव भी मिलना कठिन है । अतः बहुत विचार करना । कडवी दवा सगी माता हो पिला सकती है, वह परिणाम में सुख देने वालो होतो है । पीठ थपथपाने वाले बहुत मिलेंगे परन्तु दुःख में भागोदार बनने को कोई खड़ा नहीं रहता।' 'अहमदाबाद में सब जगह जीर्णोद्धार में जाता है । बीजापुर, महेसाणा, साणंद, ऊंझा, डिसा, भावनगर, राजकोट, सीहोर 72 ] [ स्वप्नद्रव्य, देवद्रव्य
SR No.002500
Book TitleSwapnadravya Devdravya Hi Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1984
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size8 MB
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