SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ में जाता है परन्तु वह साधारण सर्वसामान्य नहीं; परन्तु देरासर के साधारण में जाता है अर्थात् केसर-घो-पुजारी का पगार आदि में जाता है । इसलिये यह शासन की प्रणाली एक धारा में चली आ रही हैं, इसमें आ जाना ही हितकारी है।' गतवर्ष में बोजापुर में हमारी और कैलाससागरजी की निश्रा में बहुत वर्षों से विपरीत चली आती हुई प्रणाली को बदल कर स्वप्नों के पैसे देवद्रव्य में ले जाने का ठहराव हुआ था। इस वर्ष हमने यहाँ भी व्याख्यान में जाहिर किया था कि देवद्रव्य में जितना नुक्सान पड़ेगा उतनो भरपाई कहीं से भी करानी होगी। इस प्रकार निश्चित करके ही व्याख्यान चालू किया था। उसमें से २५ प्रतिशत को जबाबदारी मैंने ली थी। इससे इस वर्ष स्वनिमित्त देवद्रव्य को एक लाल पाई की भी हानि नहीं हुई। इस विषय में लगभग एक सप्ताह तक व्याख्यान चलाया था।। मूख्य ट्रस्टियों के विचार परिवर्तन करने के हुए हैं परन्तु संघ का का काम होने से एक अग्निकण सौ मन जुवार का नाश करता है, ऐसा होने से धीरे धीरे लाइन पर आ जावेंगे। __आपको भी मिथ्या चली आती हुई प्रणाली को बदलकर अच्छे मार्ग पर आ जाना चाहिए । सबके साथ मिल जाना ही योग्य है । गिरते हुए का उदाहरण नहीं लेना चाहिए । उदाहरण तो चढ़ते हुए का ही लेना चाहिए। ह. त्रैलोक्यसागर का धर्मलाम भादवा वदी १० (वि. सं. २०२२) पाटन, सागर का उपाश्रय स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य ] [71
SR No.002500
Book TitleSwapnadravya Devdravya Hi Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1984
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy