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________________ विरोध कर इस वर्ष के लिए तो देवद्रव्य के भक्षण पाप से संघ को बचाने में भगीरथ पूरुषार्थ कर सफलता प्राप्त की है। जब राधनपुर में विजय गच्छ संघ और सागर गच्छ संघदोनों संघों के व्यवस्थापकों में से एक स्वप्नों की उपज का १० आनो भाग और दूसरा १६ आनी साधारण खाते में ले जाता है । और वह साधारण अर्थात उपाश्रय में खर्च किया जाता है, साधुसाध्वी की वैयावच्च में, उपाश्रय के नौकर को वेतन देने में खर्च किया जाता है-इस प्रकार चतुर्विध संघ देवद्रव्य के भक्षण का महान् दोषो बनता है । यह बात उनके ध्यान में आने पर उन्होंने निर्भयता पूर्वक राधनपूर के विजयगच्छ संघ के तथा सागरगच्छ संघ के वहीवटदारों को जो स्पष्ट, सचोट तथा शास्त्रानुसारी पत्र लिखा था वह उनकी शासननिष्ठा तथा सुविहित परम्परा के लिए लगन को बताता है। विजयगच्छ संघ के कार्यवाहकों को पत्र लिखते हुए वे स्पष्ट कहते हैं कि, 'वहाँ स्वप्नों के पैसों का अमूक भाग सर्व सामान्य साधारण खाते में जाता है, यह अयोग्य है । क्योंकि स्वप्नों के पैसों का थोड़ा भी भाग सर्वसामान्य साधारण खाते में जाता हो, ऐसा एक भी गांव मिलना मुश्किल है। अत: बहुत ही विचार करना चाहिये । ___ अहमदाबाद में सब जगह जीर्णोद्धार में जाता है। बीजापुर, साणंद, ऊंझा, डीसा, भावनगर, सिहोर, राजकोट, माटुंगा, बोरीवली, दादर, सायन, भायखला, महेसाणा आदि बड़े-बड़े नगरों में भी देवद्रव्य में जाता है, कहीं कहीं अमुक भाग साधारण 70 ] | स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य
SR No.002500
Book TitleSwapnadravya Devdravya Hi Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1984
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size8 MB
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