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का स्वागत करते हुए अपनी गुणानुरागिता एवं शास्त्रनिष्ठा व्यक्त की है, जो सचमुच प्रशंसनीय है । वे कहते हैं कि, 'स्वप्नों के द्रव्य में परिवर्तन करवाया, यह बहुत ही सुन्दर कार्य हुआ है परन्तु कृपया यह बतावें कि यह इसी वर्ष के लिए है या हमेशा के लिए ? यहाँ २५ प्रतिशत ज्ञान में और २५ प्रतिशत उपाश्रय
जाता है । महेनत बहुत की परन्तु यह जो देवद्रव्य में हानि होती है वह कहीं से भी प्राप्त कर जीर्णोद्धार की पूर्ति कर दी जाय ऐसा संघ को कहकर व्याख्यान वांचा है, इसलिए हमारे निमित्त से हानि नहीं होगी । वरघोड़ा की प्रणाली चालू की है यह भी बहुत उत्तम कार्यं किया है। शासन की शोभा में अभिवृद्धि है । ऐसे कार्य करके शासन की सेवा बजावें । यही ।
भा. व. २ सं. २०२२
सागर का उपाश्रय, पाटन
एक पर समुदाय के तथा सागर से भिन्न विजय शाखा के साधु ने दृढता रखकर, वर्षों से चली आती हुई शास्त्रविरोधी • प्रणाली का निर्भयता से विरोधकर, शास्त्रानुसारी प्रथा साहसपूर्वक शुरु की इसके लिए पू. आचार्य भगवन्त श्री कीर्तिसागरसूरीश्वरजी जैसे महापुरुष उस कार्य की तथा उस शुभ कार्य को शुरु करने वाले पू. पंन्यासजी महाराजश्री को जिस प्रकार हृदय के उल्लास के साथ बिना आमन्त्रण के स्वयमेव प्रशंसा करते हैं, शुभाशीर्वाद भेजकर पीठ थपथपाते हैं, वह कह देता है कि जैनशासन जयवन्त रहता है
इस वर्ष पाटण के सागर उपाश्रय में रहकर उन्होंने भी वहाँ जो स्वप्नों की उपज के अमुक भाग को साधारण खाते में ले जाने की वर्षों से चली आ रही प्रथा को जिसे वहाँ चातुर्मास करने वाले पू. मुनि भगवन्त निभाते रहे हैं, उसका दृढता से
स्वप्नद्रव्य देवद्रव्य ]
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