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________________ इसी प्रकार इस वर्ष पू. पंन्यासजी महाराजश्री ने हिम्मतपूर्वक राधनपुर संघ में वर्षों से चली आ रहो अशास्त्रीय कुप्रथा का विरोध कर, शास्त्रानुसारो प्रणाली शुरु करने में जो दृढता का परिचय दिया वह प्रशंसनीय है । यद्यपि राधनपुर संघ में से अमुक तत्त्वों ने उनके सामने विरोध का तूफान खड़ा करने का प्रयत्न किया तथापि पू. पंन्यासजी महाराजश्रो ने तथा संघ ने शान्ति, विवेक. उदारता, बुद्धिमता तथा विचक्षणता से उसमें अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की, यह सचमुच एक चमत्कार ही कहा जा सकता है। राधनपुर में इतना विशाल वर्ग इस प्रकार शान्तिपूर्वक उल्लास एवं उत्साह के वातावरण में चतुर्विध, संघ के साथ बैठकर स्वप्न उतार कर देवद्रव्य में उसकी आय ले जाने की शास्त्रमान्यप्रणाली डालने में सफल होगा, ऐसो बात स्वप्न में भी कोई मानने को तैयार न था। फिर भी ऐसी बात बनी है, इसका श्रेय पू. पंन्यासजी महाराजश्री तथा शासनप्रेमो श्रीसंघ के अग्रगण्य व्यक्तियों की लगन, हिम्मत तथा निर्भयता को है। , राधनपुर में हुई इस शुभ शुरुआत की अहमदाबाद में विराजमान पू. गच्छाधिपति आ. म. श्री विजयप्रेमसूरीश्वरजी महाराज, बम्बई में विराजमान पू. आ. म. श्री विजय-रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज, पू. पं. म. श्री मुक्तिविजयजी गणिवर ( वर्तमान के पू. आ. म. श्री विजयमुक्तिचन्द्र सूरीश्वरजी म. ) और पू. म. श्री रविविजयजी गणिवर ( वर्तमान में पू. आ. म. श्री विजय रविचन्द्र सूरीश्वरजी महाराजश्री ) ने अपने हार्दिक शुभाशीष भेजकर प्रशंसा की है। साथ हो इस प्रणालो को सदा के लिए चालू रखने हेतु राधनपुर संघ को प्रेरणा प्रदान की है। स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य ] [67
SR No.002500
Book TitleSwapnadravya Devdravya Hi Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1984
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size8 MB
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