SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिणामस्वरूप राधनपुर जैन संघ के पचहत्तर से अधिक प्रतिशत व्यक्तियों ने बहुत वर्षों के बाद पहली बार स्वप्न उतार कर उनकी बोली देवद्रव्य में ले जाने का निर्णय किया और तदनुसार पू. पंन्यासजी महाराज श्री की शुभनिश्रा में चतुर्विध संघ की उपस्थिति में स्वप्न उतारे और उसमें पिछले कई वर्षों में नहीं हुई ऐसी अच्छी से अच्छी देवद्रव्य की आमदनी हुई जिसे देवद्रव्य खाते में ले जाकर उसे राधनपुर में हो खर्च करने का निर्णय लिया। कतिपय आग्रहो मानस रखने वाले वर्ग ने पू. मुनिराजश्री की अनुपस्थिति में स्वप्न उतारकर उनकी बोली केवल अपने कदाग्रह को पुष्ट करने हेतु साधारण खाते में ले जाकर अपनी शास्त्रविरोधी बात को पकड़ कर रखी। राधनपुर में आज १० वर्ष पूर्व इसी प्रकार पू. पंन्यासजी महाराजश्री की सचोट प्रेरणा से कतिपय वर्षों से नहीं निकलती रथयात्रा पर्युषण पर्व की आराधना के उद्यापन रूप में भादवा सुदी ५ को भक्तिभावित भाग्यशालियों ने अपने हाथों से रथ को खींचकर निकाली। उस समय भी अमुक दो आनो भाग लोगों का विरोध था परन्तु उसके बाद अब तो वह रथयात्रा समस्त राधनपुर जैन संघ उत्साह के साथ भा. सु. ५ को धामधूमपूर्वक निकालता है। वहाँ विजयगच्छ तथा सागरगच्छ संघ के व्यवस्थापक उस रथयात्रा महोत्सव को शानदार रोति से मनाते हैं । इस वर्ष भी पांच रथों के साथ रथयात्रा निकाली गई। सागरगच्छ जैन संघ को पेढ़ी ने रथयात्रा निकालो और उसमें रु. १४००) को देवद्रव्य की आय हुई। भक्तिभावित भाग्यशालियों ने रयों को अपने कंधे पर उठाकर रथयात्रा में प्रभुभक्ति का लाभ लिया। एक भी रथ में बैल नहीं जोड़े गये थे। 66 ] । स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य
SR No.002500
Book TitleSwapnadravya Devdravya Hi Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1984
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy