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प्रकरण [ ३ ]
देवद्रव्यं केवल देव की भक्ति-निमित्त हो लगाया जा सकता है ।
प्रभु
[ उपर्युक्त लेखों से यह बात सिद्ध होती है कि, स्वप्न उतारने की प्रथा जब से शुरु हुई तब से यह बात निश्चित-सी है कि स्वप्न की बोली में जो द्रव्य बोला जाता है वह देवद्रव्य ही गिना जाता है । इसमें यह बात भी स्वतः सिद्ध है कि, के निमित्त प्रभुभक्ति के लक्ष्य से जो बोली श्री जिनमन्दिर में या उपाश्रय में या किसी भी स्थान पर बोली जाय उनकी आय देवद्रव्य में ही गिनी जाती है । सेन प्रश्न जैसे प्रामाणिक और सुविहित परम्परा-मान्य प्राचीन ग्रन्थ में भी माला की उपज को ज्ञानद्रव्य या साधारण द्रव्य में न ले जाने का बताकर पू. सुविहित शिरोमणि आचार्य भगवन्त श्री विजयसेन सूरीश्वरजी महाराज ने 'माला की उपज को देवद्रव्य में ले जाने का' स्पष्ट विधान किया है । ]
सेन प्रश्न के दूसरे उल्लास में पं. श्री आनन्दविजयजी गणि ने प्रश्न किया है कि 'माला सम्बन्धी सोना, चांदी, सूत्र आदि द्रव्य को देवद्रव्य गिना जाय या साधारण द्रव्य ? उसके उतर में पू. आ. म. श्री विजय सेनसूरिजी महाराज ने स्पष्ट रीति से बताया है कि, 'वह सब देवद्रव्य गिना जाय' । ( सेन प्रश्न : भाषान्तर पेज ६९ ) जब इस प्रकार भगवान् के समक्ष बोली जाने
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[ स्वप्नद्रव्य देवद्रव्य