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वाली माला का द्रव्य देवद्रव्य गिना जाता है तो भगवान् के निमित्त जो द्रव्य बोला जाता है वह तो स्पष्टरूप से देवद्रव्य है, इसमें विशेष स्पष्टता की कोई आवश्यकता नहीं रहती है । साथ ही उस दूसरे उल्लास में आगे बढ़कर पं- श्री कनकविजयजी गगिकृत प्रश्न के उत्तर में पू. आ. श्री विजयसेनसूरि म. श्री स्पष्ट रीति से फरमाते हैं कि देवद्रव्य केवल देव के निमित्त ही काम में लिया जा सकता है ।
( सेन प्रश्न उल्लास २ पेज ८८ गुजराती अनुवाद)
[ इन दोनों प्रश्नोत्तरों से स्पष्ट समझा जा सकता है कि स्वप्न-द्रव्य देवद्रव्य ही है । और उसका उपयोग केवल देव की भक्ति के सिवाय अन्यत्र कहीं नहीं हो सकता । उसमें भी जिनमन्दिर, जिनमूर्ति तथा जीर्णोद्धारादि कार्यों में ही उसका उपयोग होता है । अथवा देवनिमित्त के कार्यों में उपयोग हो सकता है । परन्तु स्वयं के लिए प्रभु-पूजा हेतु केशर-वन्दन आदि या पुजारी को देने के लिए - इस प्रकार के कारणों के होने पर अपवाद के सिवाय, उसका उपयोग नहीं हो सकता । जहाँ तीर्थ आदि स्थलों पूजा आदि के लिए देवद्रव्य का विवशता से उपयोग करना पड़े, तो उसको छोड़कर अपने द्वारा की जाने वाली प्रभु पूजा के कार्य में देवद्रव्य का उपयोग नहीं किया जा सकता ।
माला की उपज की तरह स्वप्न द्रव्य भी देवद्रव्य गिना जाता है, इस मान्य बात का अधिक पिष्ट पेषण करना व्यर्थ है । हाथ में रहे हुए कंकण को देखने के लिए कांच की क्या जरूरत है ?
ऐसा होते हुए भी राधनपुर में वर्षों से ऐसी अशास्त्रीय प्रणाली शुरु हुई है जिसके परिणाम स्वरूप सुविहित आचार्यदेव
स्वप्नद्रव्य देवद्रव्य ]
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