________________
उन्होंने स्थानकवासी स्व. स्वामी अमरसिंहजी द्वारा पू. स्व. आ. म. श्रीमद् विजयानंद सूरीश्वरजी महाराजा को पूछे गये सौ प्रश्नों का संग्रह किया है। इन प्रश्नोत्तरों में नौवाँ प्रश्नोत्तर इस प्रकार है:
प्रश्न ९. स्वप्न उतारना, घी चढ़ाना, फिर नीलाम करना और दो तीन रूपये मन बेचना-यह क्या भगवान् का घी कौड़ा (सौदा) है ? सो लिखिये।
उ० ९. स्वप्न उतारना, घो बोलना इत्यादिक धर्म की प्रभावना और जिन द्रव्य की वृद्धि का हेतु है। धर्म की प्रभावना करने से प्राणी तीर्थंकर गोत्र बांधता है, यह कथन श्री ज्ञाता सूत्र में हैं। और जिनद्रव्य की वृद्धि करने वाला भी तीर्थंकर गोत्र बांधता है, यह कथन भी संबोध सत्तरी शास्त्र में है। घी की बोलो के वास्ते जो लिखा हैं, उसका उत्तर. यह है कि जैसे तुम्हारे आचारांगादि शास्त्र भगवान की वाणी दो या चार रुपये में बिकती है वैसे घी का भी मोल होता है।
.ऊपर के उत्तर में, पू. स्व. आ. म. श्रीमद् विजयानन्दसूरीश्वरजी ( आत्मारामजी ) महाराज ने स्पष्टरूप से बताया है कि स्वप्न उतारना और उनकी बोली बोलना, इसमें धर्म की प्रभावना और देवद्रव्य की वृद्धि हेतु है।
- इस हेतु को स्पष्ट रूप से प्रतिपादित करने के पश्चात् उन्होंने फरमाया है कि, 'धर्म की प्रभावना करने से प्राणी श्री तीर्थंकर नामकर्म उपार्जित करता है, ऐसा कथन श्री ज्ञातासूत्र में है और देवद्रव्य की वृद्धि करने वाला भी श्री तीर्थंकर नामकर्म उपाजित करता है-ऐसा कथन श्री सम्बोध सत्तरी शास्त्र में है।'
50 ]
[ स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य