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________________ स्वप्न द्रव्य विषयक स्पष्ट अभिप्राय 'स्वप्न उतारना, घी बोलना इत्यादिक धर्म की प्रभावना और जिन द्रव्य की वृद्धि का हेतु है । भगवान् की माता को आये हुए चवदह स्वप्न आदि की बोली की आय देवद्रव्य खाते में ले जाने से रोकने हेतु और उस आय को या उसके अमुक भाग को साधारण द्रव्य खाते में ले जाने हेतु अभी पू. पांचालदेशोद्धारक न्यायाम्भोनिधि स्व. आचार्य भगवान् श्रीमद् विजयानंद सूरीश्वरजी ( आत्मारामजी ) महाराज के नाम का उपयोग किया जा रहा है परन्तु वे स्व. महापुरुष 'स्वप्न की बोली की आय को देवद्रव्य खाते में ले जाना चाहिए' ऐसा मानते थे । विक्रम सं. १९४८ में श्री जैन धर्म प्रसारक सभा भावनगर की तरफ से 'ढुंढक हित शिक्षा अपर नाम 'गप्पदीपिका समीर' नाम की एक पुस्तिका अहमदाबाद के 'युनियन प्रिन्टिंग प्रेस में छपवा कर प्रकाशित हुई थी। उस पुस्तक के ८६ वें पृष्ठ पर उक्त स्व. महापुरुष का स्वप्न द्रव्य संबंधी स्पष्ट अभिप्राय, प्रकट हुआ है । उस पुस्तिका के अन्त में बताया गया है कि ' इत्याचार्यष्टाधिकसहस्त्रश्रियायुक्त श्रीमद् विजयानंदसूरीश्वरस्यापरनाम्ना श्रीमदात्माराम महामुने ज्येष्ठशिष्य श्रीमल्लक्ष्मीविजयः तच्छिष्यः श्रीमद् हर्षविजयः तल्लधुशिष्येन वल्लभाख्यमुनिना कृतः गप्पदीपिकासमीर नाम्नां ग्रन्थः ॥" इससे प्रतीत होता है कि यह पुस्तिका स्व. आचार्य श्री विजयवल्लभसूरिजी महाराज ने बनाई है। इस पुस्तिका में स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य ] [ 49
SR No.002500
Book TitleSwapnadravya Devdravya Hi Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1984
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size8 MB
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