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प्रकरण [२] स्वप्न की प्राय देवद्रव्य में ही जातो है, यह बात शास्त्रानुसारी सुविहित महापुरुषों द्वारा स्वीकृत और उपदिष्ट है ।
पू. पाद न्यायाम्भोनिधि बोसवीं सदी के अद्वितीय प्रभावक आचार्यदेव श्रीमद् विजयानंद सूरीश्वरजी महाराजश्री के नाम से उनके ही समुदाय के साधु-महात्माओं की ओर से ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने स्वप्नों की आय को साधारण खाते में (जिस खाते में श्रावक-श्राविका के व्यक्तिगत उपयोग का भी समावेश होता है ) ले जाने का फरमाया है और वैसी प्रवृत्ति को उत्तेजन दिया है, इस प्रकार के भ्रामक प्रचार के विरुद्ध उन श्रीमद् के समुदाय के तथा उन श्रीमद की पाट-परम्परा में पू. पाद व्याख्यान-वाचस्पति परम शासन प्रभावक श्री आचार्यदेव व श्रीमद् विजयरामचन्द्र सूरीश्वरजी महाराजश्री ने 'जैन प्रवचन' में अधिकृत रूप से सचोट प्रतिकार किया है। उन्होंने सिद्ध किया है कि पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद् विजयानंदसूरीश्वरजी महाराजश्री अपरनाम पू. आत्मारामजी महाराजश्री स्वप्न की आय को देवद्रव्य में ले जाने की शास्त्रीय मान्यता रखते थे। 'जैन प्रवचन, में प्रकाशित वह लेख यहाँ उद्धृत किया जा रहा है:
पूज्य पांचालदेशोद्धारक, न्यायाम्भोनिधि, स्व. आचार्यदेव श्रीमद् विजयानन्दसूरीश्वरजी (आत्मारामजी) महाराज का
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[ स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य