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वार्य आवश्यकता अनुभव को जा रही थी, ऐसे समय में इस पुस्तक का प्रकाशन बहुत ही मननीय मार्गदर्शन देगा यह निस्संदेह है ।
स्वप्नद्रव्य को देवद्रव्य सिद्ध करने वाले प्रमाणों से परिपूर्ण इस पुस्तक में सम्पादित संकलित सामग्री की गहराई में उतरने से पहले एक बार यह विचार कर लें कि 'देवद्रव्यं किसे कहते हैं ? और देवद्रव्य की वृद्धि का सर्वव्यापी माध्यम आज क्या है ?
प्रथम देवद्रव्य की बात लें । देव के सामने भक्ति के निमित्त स्वेच्छा से समर्पित द्रव्य, देवद्रव्य गिना जाता हैं । इस समर्पण के प्रकारों में भगवान् के पांच कल्याणक तथा माला परिधानादि अनेक प्रसंगों को लेकर होने वाला सम्पत्ति समर्पण आ सकता है ।
ऐसे देवद्रव्य की वृद्धि का सर्वव्यापी माध्यम आज तो स्वप्नों की बोली है जो पर्युषण पर्व में बोलो जाती है । क्योंकि भारत के अनेक गांवों-नगरों में प्रतिवर्ष पर्युषण में स्वप्न उतारने की परम्परा चली आ रही है ।
स्वन्न उतारने को क्रिया प्रभु के च्यवन-कल्याण महोत्सव का एक अंग होने से इसे लेकर बोली जाने वाली बोली का द्रव्य प्रभु भक्ति निमित्तक होने से देवद्रव्य ही गिना जाना चाहिये । इस स्वप्नद्रव्य को देवद्रव्य में ले जाने की शास्त्रीय प्रणाली के कारण ही जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ को उत्तराधिकार में मिले हुए भव्य मन्दिर और भव्यातिभव्य तीर्थ आज भी अनुपम अस्मिता लिये हुए हैं तथा भव्यातिभव्य नये मन्दिरों का निर्माण भी होता रहता है ।
भारत के संघों में पर्युषण के प्रसंग पर स्वप्न वाचन के एक ही दिन होने वाली बोलियों की जोड़ की जाय तो उसकी