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अनुमानित राशि करोड़ की संख्या से भी ऊपर जा सकती है इस स्वप्न द्रव्य की आय को देवद्रव्य में ले जाने के कारण ही हमारे मन्दिरों और तीर्थों की शिल्पकला तथा स्थापत्य की अनुपमता विश्व प्रसिद्ध है । आबू, राणकपुर और तारंगा जैसे प्राचीन तीर्थों को आज भी उनके मूल स्वरूप में टिकाये रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली स्वप्नद्रव्य को देवद्रव्य गिनने वाली अपनी शास्त्रीय परम्परा को अखण्डित रखने में ही अपना हित है । इससे ही अपने भव्य तीर्थ एवं मन्दिर काल के प्रवाह के सामने उसकी टक्कर को झेलते हुए दृढ़ता से खड़े रह सकेंगे ।
प्रभुभक्ति के लक्ष्य में रखकर बोली जाने वाली बोली का द्रव्य देवद्रव्य गिना जाता है और उसकी वृद्धि का सर्वव्यापी माध्यम, स्वप्न की बोली है, यह बात संक्षेप में हमने जान ली । अब प्रस्तुत पुस्तक का परिचय प्राप्त करें : --
प्रस्तुत पुस्तक में चार खण्ड हैं । प्रथय के तीन खण्डों में 'स्वप्नद्रव्य देवद्रव्य ही है' इस भाव को उद्घोषित करते हुए अनेकानेक पूज्य आचार्यदेवादि मुनिवरों के स्पष्ट अभिप्राय पत्र साधारण खाते के खर्च को चलाने के लिए स्वप्न की बोलो का चार्ज बढ़ाने के विचार की अशास्त्रीयता और पिछले पचास वर्षो में हुए तीन मुनि सम्मेलनों में इस सम्बन्ध में लिये गये निर्णयों का सुन्दर, स्पष्ट एवं सरल उल्लेख किया गया है ।
इसके पश्चात् चतुर्थ खण्ड में 'होर प्रश्न' और 'सेन प्रश्न ' जैसे शासनमान्य ग्रन्थ के उद्धरण देकर देवद्रव्य की सुरक्षा, सदुपयोग और उसके संवर्धन के विषय में स्पष्ट मार्गदर्शन दिया गया है ।
चौथे खण्ड में दिये गये मार्गदर्शन से गुरुपूजन सम्बन्धी प्रश्न पर भी पर्याप्त प्रकाश पड़ता है । ' पैसे से गुरुपूजन नहीं हो