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________________ हुए अखिल भारतवर्षोय श्री जैन श्वेताम्बर मुनि सम्मेलन द्वारा किये गये 'धर्म में बाधाकारो राजसत्ता के प्रवेश को यह-सम्मेलन अयोग्य मानता है'-इस ११ वें निर्णय पर पूर्वापर विचारणा कर सर्वानुमति से निम्नलिखित निर्णय करता है 'यह श्रमण संघ मानता है कि जैनों की जो जो संस्थाएँ, सात क्षेत्र, धर्मस्थान, मन्दिर और उपाश्रय आदि हैं वे सब अपनेअपने अधिकार अनुसार श्रमण-प्रधान चतुर्विध संघ की मालिको की हैं। उनके वहीवटदार ( व्यवस्थापक ) उस श्रमणसंघ के शास्त्रीय आदेश के अनुसार काम करने वाले सेवाभावी सद्गृहस्थ हैं। व्यवस्थापकों को शास्त्राज्ञा तथा संघ को मर्यादा के विरुद्ध कुछ भी करने का हक नहीं है। इसी तरह सरकार को भी संघ का हक उठाकर वहीवटदारों को हो संस्थाओं के सीधे मालिक मानकर उसके द्वारा अपना हक जमाने को जरूरत नहीं है । फिर । भी यदि व्यवस्थापक या सरकार ऐसा अनुचित कदम उठावे तो उनको ऐसा करने से रोकने के लिए अपने अधिकार अनुसार सक्रिय प्रयत्न करना चाहिए।' स्थल:-बाबु पन्नालाल की धर्मशाला वि. सं. २००७, वै. सु. १० बुध ता. १६-५-५१ भगवान् श्री महावीर भगवन्त केवलज्ञान कल्याणक. लि. श्री पालीताना स्थित समस्त श्रमण संघ की ओर से आचार्य श्री विजयवल्लभरि म. की आज्ञा से पं. समुद्रविजय (आ. म. श्री विजयसमुद्रसूरि म. श्री) आ. श्री कोतिसागरसूरि ह. स्वयं आ. श्री विजयमहेन्द्रसूरि ह. स्वयं 46 ] [ स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य
SR No.002500
Book TitleSwapnadravya Devdravya Hi Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1984
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size8 MB
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