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________________ पूजा आदि में बाधा आती दृष्टिगोचर होती हो तो देवद्रव्य में से प्रभुपूजा आदि का प्रबन्ध कर लिया जाय । परन्तु प्रभु की पूजा आदि तो अवश्य होनी ही चाहिए। ५. तीर्थ और मन्दिर के व्यवस्थापकों को चाहिए कि तीर्थ और मन्दिर सम्बन्धी कार्य के लिए आवश्यक धनराशि रखकर शेष धनराशि से तीर्थोद्धार और जीर्णोद्धार तथा नवीन मन्दिरों के लिए योग्य मदद देवें; ऐसी यह सम्मेलन भलामन करता है। विजयनेमिसूरि, जयसिंहसूरिजी विजयसिद्धिसूरि, आनन्दसागर, विजयवल्लभसूरि, विजयदानसूरि, विजयनीतिसूरि, मुनि सागरचन्द, विजयभूपेन्द्रसूरि श्री राजनगर जैन संघ, कस्तूरभाई मणीभाई वंडावीला ता. १०-५-३४ ___(मुनि सम्मेलन के इन ठहरावों की मूल प्रति का ब्लाक परिशिष्ट में दिया गया है।) (८) श्री शत्रुजय तीर्थ की पुनीत छाया में सिद्धक्षेत्र पालीताना में विराजमान श्री श्रमणसंघ द्वारा किये गये निर्णय श्री सिद्धक्षेत्र पालीताना में विराजमान समस्त जैन श्वेताम्बर श्रमणसंघ, वि. सं. २००७ वैशाख सुदो ६ शनिवार से वैशाख सुदी १० बुधवार तक प्रतिदिन दोपहर में बाबु पन्नालाल की धर्मशाला में एकत्रित होकर, वि. सं. १९९० में राजनगर में - स्वप्नद्रव्य, देवद्रव्य । [45
SR No.002500
Book TitleSwapnadravya Devdravya Hi Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1984
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size8 MB
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