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देवद्रव्य, ज्ञानद्रव्य या अन्य जिनमन्दिर, उपाश्रय, ज्ञानभण्डार तथा साधारण खाता आदि के द्रव्य की आय को शास्त्रानुसार किस प्रकार सद्व्यय करना, यह श्रीसंघों की जबाबदारी है । श्रमणप्रधान श्रीसंवों को सुविहितशास्त्रानुसारी प्रणाली के प्रति वफादार रहकर पू. पाद परमगीतार्थ सुविहित आचार्य भगवन्तों की आज्ञानुसार सब धार्मिक स्थावर-जंगम जायदाद का वहीवट, व्यवस्था, संरक्षण एवं संवर्धन करना चाहिए। इस बात को लक्ष्य में लेकर ,श्री श्रमणसंघ सम्मेलन द्वारा किये गये उपयोगी निर्णय यहां प्रसिद्ध किये जा रहे हैं। उनसे सूचित होता है कि श्रीसंवों को उन निर्णयों का आवश्यकरूप से पालन करना चाहिए।
वि. सं. १६६० में राजनगर (अहमदाबाद) में एकत्रित श्रमण सम्मेलन द्वारा देवद्रव्य सम्बन्धी किया गया
.... महत्त्वपूर्ण निर्णय १. देवद्रव्य, जिन चैत्य तथा जिनमूर्ति सिवाय अन्य किसी भी
क्षेत्र में काम में नहीं लिया जा सकता। २. प्रभु के मन्दिर में या मन्दिर के बाहर-किसी भी स्थान पर
प्रभु के निमित्त जो जो बोलियाँ बोली जावें, वह सब देवद्रव्य
कहा जाता है। ३. उपधान सम्बन्धी माला आदि को उपज देवद्रव्य में ले जाना
उचित समझा जाता है। ४. श्रावकों को अपने द्रव्य से प्रभु की पूजा आदि का लाभ लेना __ चाहिए परन्तु किसी स्थान पर सामग्री के अभाव में प्रभु को
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[ स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य