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________________ वर्षों पहिले से ऐसी हलचल शुरु हुई जिससे अपने घर के खर्च में कमी न करनी पडे, धर्मादा खाते में से ही देरासरजी, उपाश्रय एवं अन्य भी अपने उपयोग में आने वाले खातों का सीधा खर्च निकल जाय तो ठीक, ऐसी कृपण तथा अनुदार मनोवृत्ति वाले दिलों की संकीर्ण वृत्ति से प्रेरित होकर अमुक वर्ग ने स्वप्नादि की उपज को साधारण खाते में ले जाने की प्रवत्ति चलाई थी जिसमें उसी वृत्ति वाले कुछ लोग सम्मिलित हुए। उस अवसर पर पू. पाद शासन मान्य सुविहित महापुरुषों ने उसका तीव्र विरोध करना शुरु किया ताकि जमाने के नाम पर शास्त्र विरोधी प्रवृत्ति आगे न बढ़े। ऐसा ही एक प्रसंग बडौदा में ई. स. १९२० में बना। उस समय वहाँ विराजमाम पू. पाद सुविहित शासन मान्य मुनिवरों ने उसका विरोध किया था जिसका विवरण उस समय के पत्र में प्रकट हुआ था जो यहाँ दिया जा रहा है जिससे इस विषय में स्पष्ट जानकारी हो सके।] बड़ौदा जैन संघ का पारित प्रस्ताव ता. ३-१०-१९२० बड़ौदा में श्री पर्युषण पर्व में देवद्रव्य सम्बन्धी महेसाणा संघ की तरफ से आई हुई जाहिर विनति के सम्बन्ध में प्रश्न उठने पर पं. श्री मोहनविजयजी (स्व. आ. म. श्री विजयमोहनसूरि म. श्री) ने देवद्रव्य शास्त्राधारित आगमोक्त है इस विषय पर शास्त्रपाठों से दो घंटे तक व्याख्यान देकर मूल रिवाज को कायम रखने की सूचना की थी। अतः देवद्रव्य की आवक के सम्बन्ध में चले आते हुए रिवाज को शास्त्राधार के कारण अस्ख 42 ] [ स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य
SR No.002500
Book TitleSwapnadravya Devdravya Hi Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1984
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size8 MB
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