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क्रिया समवसरण रूप नंदि के आगे होती है । क्रियाएँ प्रभुजी के के सम्मुख की जाने के कारण उनकी उपज देवद्रव्य में ले जानी चाहिए।
प्रश्न- २९८ स्वप्नों को उपज तथा उनका घी देवद्रव्य खाते में ले जाने की शुरूआत अमुक समय से हुई है, तो उसमें परिवर्तन क्यों नहीं किया जा सकता है ?
समाधान- अर्हन्त परमात्मा की माता ने स्वप्न देखे थे, अतः वस्तुतः उसकी सारी आय देवद्रव्य में जानी चादिये । अर्थात् देवाधिदेव के उद्देश्य से ही यह आय है । ध्यान में रखना चाहिए कि च्यवन, जन्म, दीक्षा- ये कल्याणक भी श्री अरिहंत परमात्मा के ही हैं। इन्द्रादिकों ने श्री जिनेश्वर भगवान की स्तुति भी गर्भावतार से ही की है। चौदह स्तवनों का दर्शन अरिहन्त भगवान कुक्षि में आवें तभी उनकी माता को होता है। तीन लोक में प्रकाश भी इन तीनों कल्याणकों में होता है । अतः धार्मिक जनों के लिए गर्भावस्था से ही भगवान् अरिहंत भगवान हैं।
-'सागर समाधान' से
स्वप्न की उपज देवद्रव्य में हो जानी चाहिये बडोदा श्री संघ का ६०-६१ वर्ष में सर्वानुमति से किया
गया प्रस्ताव [स्वप्नों की बोली को देवद्रव्य में ले जाने की सुविहित शास्त्रानुसारी प्रणाली वर्षों से चली आ रही है । तथापि कुछ
स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य ]
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